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* वाह! केवो सुंदर मार्ग! *
अहो, मोक्षना मारगडा......अंतरमां समाय छे. देव–
गुरुनी वाणी ज्यां पहोंचती नथी, विकल्पनो ज्यां प्रवेश
नथी, पर्यायनो जेमां आश्रय नथी, एकलो अंतर्मुख
स्वभाव–आश्रित निरालंबी मार्ग छे. आवा मार्गने संतो
साधे छे ने जगतने देखाडे छे.
सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान–सम्यक्चारित्र ए त्रणे कार्य
आनंददायक छे. एना वडे आनंदसहित मोक्ष सधाय छे.
अहो, अतीन्द्रिय सुखना साधनरूप आ श्रेष्ठ
शुद्धरत्नत्रयकार्य, तेनुं कारण पण पोतामां त्रिकाळ छे. तेना
सेवनवडे मुमुक्षुओ मोक्षने साधे छे. –आवो मोक्षनो मार्ग छे.
वाह! केवो सुंदर मार्ग!
(विशेष माटे जुओ अंदर. पानुं : १२३)
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तंत्री: पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार * संपादक : ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. : २४९७ चैत्र (लवाजम : चार रूपिया) वर्ष २८ : अंक ६