भ.....ग.....वा.....न म.....हा.....वी.....र
हळीमळी सौ साथे चालो.....महावीर के मार्गमें....
आनंदथी सौ आत्मा साधो. तीर्थंकर–परिवारमें....
चैत्रसुद तेरस...ए दिवसे धन्य बनी भारतनी भूमि, अने धन्य
बन्या भव्यजीवोनां हृदय! आखी दुनियामां जाणे के आनंद फेलाई रह्यो. धर्मनी
वृद्धि करनारा भगवान वर्द्धमान तीर्थंकरनो अवतार थयो.
आत्मानी अप्रतिहत आराधना सहितनो ए अवतार हतो.
तीर्थंकरत्वना प्रभावसहितनो ए अवतार हतो.
तीर्थंकर तो पाकया....साथे एमनो महान परिवार पण पाक््यो. धर्मवृद्धि
करनारा महापुरुषो पाकया, तो साथे तेमना निमित्ते धर्म पामनारा जीवो पण
पाकया...धर्मकाळमां थयेला ए महावीर तीर्थंकरे जे धर्मनो उपदेश आप्यो ते आजे
पण चाली रह्यो छे.....ने आपणने कोई अपूर्वयोगे तेनी प्राप्ति थई छे....ने धर्म
झीलीने....आत्मामां तेनी अनुभूति करीने आपणे पण तीर्थंकर भगवानना धर्म
परिवारमां भळी जवानुं छे.
अमे महावीरभगवानना परिवारना छीए.....तेमनी ज परंपराना छीए’
–अहा,! केटला गौरवनी वात! भगवानना परिवार तरीके आपणी जवाबदारी
छे–आपणी टेक छे–के जे मार्गे भगवान संचर्या ते ज मार्गे जवुं.....जे भावथी
भवनो नाश करीने तेओ मोक्ष पाम्या ते ज भावनुं सेवन करवुं; जे
आत्मअनुभवथी तेओ रत्नत्रयरूप थया ते ज आत्मअनुभव प्रगट करवो.
महावीर भगवाननी महत्ता आपणे त्यारे ज समज्या गणाय के तेमणे
सेवेला आत्माभिमुखी मार्गमां जईए ने रत्नत्रय–धर्मरूप थईए; तथा प्रभुना
परिवारना बधा जीवो प्रत्ये आनंदथी धर्मनी अनुमोदना–प्रेम–सत्कारपूर्वक प्रभुना
मार्गने शोभावीए.
जय महावीर
(–हरि)