वार्षिक वीर सं. २४९७
लवाजम चैत्र
चार रूपिया
1971 APRIL
* वर्ष २८ : अंक ६ *
तारुं कारण तारामां हाजर छे.
कारणनो स्वीकार करतां ज कार्य थाय छे.
* अरिहंत परमात्मा सर्वज्ञ परमदेव ते कार्य–परमात्मा छे.
* अंदरमां जे त्रिकाळशुद्ध कारण–परमात्मा छे तेमां अंतर्मुख
थईने तेनी भावनावडे तेओ कार्य–परमात्मा थया.
* दरेक आत्मा एवा कारणपरमात्मापणे वर्तमानमां बिराजी
रह्यो छे.
* तुं तारा कारणपरमात्मानी सन्मुख थईने तेनी भावना
कर, एटले ते कारणना अवलंबने तने पण तेवुं कार्य उत्पन्न थशे,
अने तुं कार्यपरमात्मा थईश.
* पोतामां रहेल कारणपरमात्मानी भावना ते ज
कार्यपरमात्मा थवानो उपाय छे. रागनी–संयोगनी–निमित्तनी कोईनी
भावनाथी परमात्मा थवातुं नथी. एटले के तेनाथी सम्यग्दर्शनादि
कार्य पण थतुं नथी.
* जेम कार्यपरमात्मा (केवळज्ञानादि) थवानो उपाय एक
ज छे के पोताना कारणस्वभावनी भावना (–तेमां एकाग्रतारूप
परिणति) करवी, तेम सम्यग्दर्शनादि कार्य थवानो पण एक ज
उपाय छे के कारण–स्वभावनी भावना करवी, –तेनी सन्मुख
परिणति करवी. अंतरना स्वभावमां ज त्रिकाळ एवुं सामर्थ्य छे
के तेनी सन्मुख थतांज पोते सम्यग्दर्शनादिनुं कारण थईने
सम्यग्दर्शनादि कार्यने प्रगट करे छे.
* –माटे तुं निजकारणपरमात्माने ध्यावीने तेने ज भाव.
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