Atmadharma magazine - Ank 330
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९७
शास्त्रना वक्ता अने श्रोतानुं
एक ज प्रयोजन– ‘आत्मानी शुद्धि थाय.....
ने मोक्षदशा प्रगटे’

श्री कुंदकुंदस्वामी कहे छे के आ नियमसार में निजभावना अर्थे रच्युं छे. तथा
मार्गनी प्रभावना अर्थे में आ शास्त्र रच्युं छे.
टीकाकार मुनिराज कहे छे के मारा आत्मानी शुद्धिने अर्थे तथा भव्य जीवोना
मोक्षने माटे हुं आ शास्त्रनी टीका करुं छुं. आ शास्त्रमां कहेला शुद्धात्माना भावोनुं मारा
अंतरमां फरी फरीने घोलन थाय छे तेथी हुं आ टीका करवा प्रेरायो छुं.
समयसारनी टीकामां पण अमृतचंद्रस्वामीए एम कह्युं छे के आ शास्त्रनी टीका
द्वारा शुद्धात्माना भावोनुं वारंवार घोलन थतां मारा आत्मानी परमविशुद्धि थाओ.
तथा मारा अने परना मोहना नाशने माटे द्रव्य अने भावरूप आ टीका रचवानो उद्यम
करुं छुं. ‘परम आनंदना पिपासु भव्य जीवोने माटे आ टीका रचाय छे’ –एम
प्रवचनसारमां कह्युं छे.
–आ रीते शास्त्रकारोनुं एक ज प्रयोजन छे के आत्मानी शुद्धता थाय. तथा
मोक्षने अर्थे शास्त्र रचाय छे; एटले जेनाथी मोक्ष थाय, ने जे समजवाथी परम आनंद
थाय, –ते ज शास्त्रनुं प्रयोजन छे. मोक्षनी प्राप्ति वीतरागभावथी थाय छे, रागवडे
मोक्षनी प्राप्ति थती नथी; एटले वच्चे राग अने स्वर्गादि आवे ते कांई प्रयोजनरूप
नथी.
आ रीते, वीतरागभाव ते ज शास्त्रनुं तात्पर्य छे. आत्माना स्वभावरूप
मोक्षमार्ग प्रगटे ते ज एक प्रयोजन छे; ने श्रोता पण एवा ज प्रयोजनपूर्वक आ शास्त्र
सांभळे छे. –एटले वीतरागशास्त्रना वक्ता अने श्रोतानुं ध्येय एक ज छे के पोताना
आत्मानी शुद्धि थाय ने मोहनो नाश थईने परम आनंदरूप मोक्षदशा प्रगटे.
हे भव्य! तुं आवुं ज ध्येय लक्षमां राखजे.
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