: चैत्र : २४९७ आत्मधर्म : ३ :
मोंघुं पण साचुं लेजो......
सोंघुं समजीने
खोटुं न लेशो
एक माणस कहे: तमे सोनगढवाळाए सम्यग्दर्शन बहु मोंघुं
करी नाख्युं! मुमुक्षुए कह्युं: भाई! भले मोंघुं, –पण मळे तो छे!
बीजे (विरुद्ध मार्गमां) तो समकित मळतुं ज नथी. भले मोंघो होय
पण साचो माल लेवो. सोंघो समजीने खोटो माल लई ल्ये ते तो
छेतराय छे. तें जेने सोंघु मानी लीधुं छे. (–शुभरागथी सम्यक्त्व
मानी लीधुं छे) ते खरेखर सोंघु नथी पण मोंघुं छे केमके तेमां तारी
बधी महेनत नकामी जवानी छे, तने साचुं सम्यक्त्व मळवानुं नथी.
माटे, भले तेने मोंघुं लागे तोपण समकत्वनो आ साचो मार्ग तुं
ले.... एनाथी तने मोक्षसुख मळशे.
सुंदर मार्ग
ईर्षाभावथी कोई लोको सुंदर मार्गने निंदे तो तेनां वचनो
सांभळीने जिनमार्ग प्रत्ये अभक्ति न करजो. जिनेश्वरप्रणीत शुद्ध
रत्नत्रयमार्ग प्रत्ये भक्ति कर्तव्य छे.
संतोनी साथे
हे जीव! रत्नत्रयरूप संतोनो तने साथ मळ्यो....तो तेमनी
उपासना वडे तुं पण तेमनी साथे रत्नत्रयमार्गनो प्रवासी था.
एक ज मार्गे
रत्नत्रयमार्गी संतो आपणने एम कहे छे के–अनेक
विचित्रताथी भरेला आ संसारमां उदासीन रहीने, मात्र तारा
आत्मानुं हित थाय ते एक ज मार्गे चालजे.