Atmadharma magazine - Ank 330
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९७
नाटक सुनत हिये फाटक खुलत है
समयसार–नाटक द्वारा शुद्धात्मानुं श्रवण करतां
हैयानां फाटक खुली जाय छे.
(समयसार–नाटकनां अध्यात्मरसझरता
प्रवचनोमांथी लेखांक : ३)
* * * * *
* शास्त्रकार कहे छे के अहो, भगवान अरिहंतदेवे दिव्य वाणीवडे शुद्धात्मा
बताव्यो आत्मानुं शुद्धस्वरूप जेमना प्रसादथी प्राप्त थयुं ते भगवंत प्रत्ये अमारा
हृदयमां परम भक्ति वहे छे. ए भक्तिने लीधे अमने सुबुद्धि प्रगटी छे ने कुबुद्धि दूर
थई गई छे; एटले के भगवाने आत्मानुं जेवुं शुद्धस्वरूप बताव्युं तेना अनुभवथी
सम्यग्ज्ञानरूप सुबुद्धि प्रगटी छे. जुओ, आत्मानुं ज्ञान थाय ते ज साची सुबुद्धि छे,
एना वगरनां बधां भणतर ते तो कुबुद्धि छे, आत्माना हितने माटे ते भणतर काम
आवता नथी.
* जेणे अरहिंतदेवने ओळख्या, अने मारो आत्मा पण आवो छे–एम जाण्युं
तेने पोताना सर्वज्ञस्वभावी आत्मा साथे एकता थतां राग साथेनी एकता तूटी जाय
छे, ने स्वानुभवमां एना श्रद्धा–ज्ञानलोचन स्थिर थाय छे. ते सर्वज्ञना मार्गना परम
बहुमानपूर्वक तेना अनुभवनी पिपासाथी स्थिरचित्ते तेनो प्रयत्न करे छे.
* वळी, भगवाननी भक्तिभरेलुं अमारुं चित्त क््यारेक आरतीरूप थईने एटले
अत्यंत प्रीतिरूप थईने प्रभुसन्मुख वारी जाय छे; अंतरमां पोताना चेतनप्रभुनी
सन्मुख आवे छे, अने बहारमां सर्वज्ञपरमात्मानी सन्मुख थईने तेमनी भक्ति करे छे.
–आवी भक्तिपूर्वक अने अध्यात्मरसना घोलनपूर्वक आ समयसारनाटक–गं्रथ रचाय
छे. तेनुं भावपूर्वक श्रवण करतां शुं थाय छे? के हैयानां फाटक खूली जाय छे ने
ज्ञाननिधान प्राप्त थाय छे.