Atmadharma magazine - Ank 330
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९७ आत्मधर्म : ३३ :
(७) दर आठवर्षे आपणो आत्मा अरिहंतप्रभुना आत्माने जरूर स्पर्शे छे,
केमके सिद्धातमां एवो नियम छे के वधुमां वधु आठवर्षना अंतरे कोईने कोई
अरिहंतभगवान केवळीसमुद्घात करे ज छे; ते वखते तेमना आत्माना असंख्यप्रदेशो
आखा लोकमां सर्वत्र व्यापे छे; एटले ते वखते ज्यां आपणो आत्मा छे ते ज क्षेत्रे
अरिहंत भगवानना पण आनंदमय असंख्य प्रदेशो आपणा आत्मा साथे एकक्षेत्रे
होय छे; पण अतीन्द्रियज्ञानना अभावने लीधे आपणे तेमने देखी शकता नथी. आ
रीते दर आठ वर्षे अरिहंतप्रभुना आत्मा साथे आपणुं क्षेत्रस्पर्शन जरूर थाय छे. अने
ज्यारे अतीन्द्रियज्ञान वडे अरिहंत प्रभु जेवा आपणा आत्मानी आपणे अनुभूति
करीए त्यारे अरिहंत भगवाननुं भाव–स्पर्शन थयुं कहेवाय.
–बंधुओ, आ वखते नवा प्रश्नो नथी पूछता. अमे पूछीए अने तमे जवाब
आपो एम तो दर वखते थाय छे, परंतु हवे आ वखते तमे प्रश्नो पूछो अने आत्मधर्म
द्वारा तमने जवाब अपाशे. तो तमे अंतरमां विचार करीने सारा मजाना एक–बे के
(वधुमां वधु) त्रण प्रश्नो लखी मोकलो; तेमांथी उत्तम २प प्रश्नो पसंद करीने तेना
जवाबो तमारा नामसहित आत्मधर्ममां आपीशुं. तत्त्वने लगता प्रश्नो उपरांत धार्मिक
कोयडा, उखाणा वगेरे पण लखी शको छो.
मोकलवानुं सरनामुं–ब्र. हरिलाल जैन, सोनगढ (सौराष्ट्र)
आ वखते प्रश्नो जराक अघरा होवा छतां, गामेगामथी केटलाय सभ्योए
जवाबो लखी मोकल्या छे, अने घणी होंश बतावी छे. संपादकनी धारणा करतांय वधु
उत्साहथी भाग लेवा बदल सौने धन्यवाद! अने आवा ज उत्साहथी सौ तत्त्वज्ञानमां
आगळ वधो एवी शुभेच्छा. (वांकानेर, बडौत, उजेडिया, बेंगलोर, जांबुडी, मोरबी,
फत्तेपुर, मुंबई, पालेज, लाठी, अलवर, सावरकुंडला, सोनगढ, साबली, गोरल,
अमदावाद, जामनगर, वढवाण, कलकत्ता, रांची, राजकोट, मुडेटी, भावनगर, गोंडल,
अमरापुर, लोहारदा, खेरागढ, मुनाई, उखरेली, गोरेगांव, मुडोता, उजेडिया, कुरावड,
नाना जलुन्द्रा, मलाड, सायन, दिल्ही, वगेरे गामेथी १प० जेटला बाळकोए उत्साहथी
जवाबो लखी मोकल्या छे.)
–मुंबईमां घाटकोपर, गुजरातमां फत्तेपुर अने सौराष्ट्रमां वढवाण–ए त्रण
पाठशाळा हाल विशेष जोरदार चाली रही छे; बीजा गामो पण तेनुं अनुकरण करे.