: ३२ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९७
गतांकमां पूछेला सात प्रश्नोना जवाब
(आ वखते अघरा प्रश्नो होवा छतां १४० उपरांत नाना–मोटा सभ्योए
उत्साहथी जवाब लखी मोकल्या छे ते बदल सौने धन्यवाद! जवाबो नीचे मुजब छे)
(१) आत्माना पांच गुणनां नाम–के जे पुद्गलमां न होय. ते आ प्रमाणे– ज्ञान,
दर्शन, सुख श्रद्धा, अमूर्तपणुं (वगेरे)
*
आत्माना भान सहित स्वर्गमांथी मनुष्यमां आवतो जीव चोथा गुणस्थाने छे.
* आ जीवोने ईश्वरे बनाव्या–एवो उपदेश करनारा जीव पहेला गुणस्थाने होय
छे, –केमके खरेखर ईश्वरे कोईने बनाव्या नथी; ईश्वर तो वीतराग–सर्वज्ञ छे.
* वस्त्रसहित आत्मानी निर्विकल्प सामायिकमां बेठेलो जीव पंचमगुणस्थाने होय
छे.
* जेने मोह पण नथी अने जेने सर्वज्ञता पण नथी, एटले के जे वीतराग–छद्मस्थ
छे एवा जीव बारमा के अगियारमा गुणस्थाने होय छे.
(३) महावीर भगवान पावापुरीनी मोक्ष पधार्या छे.
(४) महावीर भगवान रत्नत्रयधर्म वडे केवळज्ञान प्रगट करीने विपुलाचल पर
दिव्यध्वनि द्वारा शुद्ध आत्मानी आराधनानो उपदेश आपीने सिद्ध पद पाम्या.
(प) १४ गुणस्थानोमांथी पहेलुं, चोथुं, पांचमुं, छठुं, सातमुं अने तेरमुं–आ छ
गुणस्थानो सदाय भरपूर रहे छे, एटले के आ छ गुणस्थानवाळा जीवो
जगतमां सदाय होय ज छे; तेथी ते गुणस्थानोने ‘निरंतर’ कहेवाय छे. आ
सिवायनां आठ गुणस्थानोवाळा जीवो जगतमां क््यारेक होय छे ने क््यारेक
नथी होतां, –तेथी ते आठ गुणस्थानोने ‘सांतर, अंतरसहित’ कहेवाय छे.
(६) दश वस्तु लखेल छे तेमांथी अत्यारे भगवानमां ने आपणामां नीचे मुजब छे–
भगवानमां–ज्ञान, केवळज्ञान, अनंतगुण, उत्पाद–व्यय–धु्रव, अरूपीपणुं,
पूर्णसुख. आपणामां–ज्ञान राग, मोह, श्रुतज्ञान, अनंतगुण, उत्पाद–व्यय–धु्रव,
अरूपीपणुं, दुःख