Atmadharma magazine - Ank 330
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९७ आत्मधर्म : ३१ :
आपी शके, अने हाल आपणी उपर उपकार वरसावी रहेला कहानगुरु जेवा संतो
आपी शके–एवी ए चैतन्यहीरानी किंमत छे. बाकी तो आखी दुनियानी संपत्ति पण
चैतन्यहीरानी तुलनामां एक पथरानी बराबरेय नथी. अरे, कांई पथराथी ते
आत्मानी किंमत थती हशे? तो खरेखर शुं किंमत छे चैतन्यहीरानी? ए किंमत तो तुं
पोते ज तारा चैतन्यहीराने देखीने–पारखीने कर. अहा, ए चैतन्यहीराने देखीने जे
आनंद थाय ते अखूट आनंदना धाममां तुं केलि करतो ज रहीश. पछी जेम जेम तुं
वधारे ने वधारे आनंदमां जतो रहीश तेम तेम हे जीव! तने एम थशे के मारा आ
चैतन्यहीरानी किंमत कोई शब्दोथी के बीजा कोई पदार्थोथी आंकी शकाय तेम नथी.
एनी किंमत तो केवळी भगवानना आनंद जेटली छे–जे आनंदनी कोई सीमा नथी.
आवडो मोटो किंमती चैतन्यहीरो तारी पासे ज होवा छतां हे मूर्खजीव! तुं बाह्य संपदा
पासे केम भीख मांगे छे? सुख थवुं होय तो आ चैतन्यहीराने देख; फोगटनो समय
गुमाव मा. –हसमुखना जयजिनेन्द्र
(धर्मप्रेमी युवानबंधुओ! तमारा एक मित्रना आ पत्रमांथी तमे प्रेरणा
मेळवजो. सं–)
आत्मधर्मना गतांकमां नीचे मुजब शब्दफेर थई गयेल छे ते
सुधारवा विनति–
पानुं ३८ छेल्ली लाईन: ‘मुलवती राखेल छे’ तेने बदले ‘मुलतवी राखेल छे’
एम जोईए.
पानुं प१ पहेली लाईन: ‘चैतन्यनीवाणीमांथी ’ तेने बदले चैतन्यनी
वीणामांथी’ एम जोईए.
(पृ: २० थी भजनना अर्थ चालु)
जे समये जे प्रकारे जेना द्वारा जे थनार छे ते थाय ज छे, तेने टाळी शकातुं
नथी–एवो अमे निरधार करी लीधो छे....तेथी हवे ज्ञानद्रष्टिने लीधे अमने कोई
भय रह्यो नथी.
अग्नि जलावे छे, पाणी उगाडे छे, –अने अनेक प्रकारे वियोग अने संयोग
थया करे छे–ए बधी रूपी–पुद्गलनी रचना छे; हुं तो तेनाथी जुदो ज्ञानस्वरूप सर्वनो
जाणनहार छुं. आम जाणी लीधुं छे तेथी हवे अमने संसारमां कोई भय नथी.
–आम निर्भयपणे ‘बुधजन’ पोताना आत्माने साधे छे.