Atmadharma magazine - Ank 330
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : चैत्र : २४९७
चैतन्य–हीरानी किंमत
मद्रासथी एक कोलेजियन भाईनो धर्मसंस्कारथी भरेलो पत्र
(मद्रासनी कोलेजमां भणता एक उत्साही युवान भाईश्री
हसमुख जे. वोरा तरफथी आवेल आ धार्मिकभावनाथी भरपूर पत्र
अहीं रजु करतां ‘आत्मधर्म’ गौरव अनुभवे छे. आपणा युवान
बंधुओ तेमज वडीलो पण आ पत्र द्वारा उत्तम प्रेरणा मेळवशे.
(–संपादक)
तेओ लखे छे के–हुं अहीं मद्रास–कोलेजमां अभ्यास करुं छुं, घणा मित्रो छे, पण
एकपण मित्र अध्यात्मिकवृत्ति धरावतो नथी. ए मित्रो साथे धर्मनी चर्चा करुं, पण
तामिलमित्रोने वधारे कई रीते समजावुं? तेम छतां मांस खावाथी, सिनेमा जोवाथी शुं
फळ आवे छे ते तेमने समजावुं छुं ने तेओ प्रेमथी सांभळे छे, अने ‘आत्मा अमर छे,
देहथी जुदो छे’ ए वात तेओ धीरे धीरे शीखी रह्या छे.
आ रीते कोलेजमां हुं एकलो छुं परंतु मारे एक उत्तम साथिदार छे–अने ते
‘आत्मधर्म’ आत्मधर्म हाथमां आवतां ज हुं एकनजरे तेना खास भाग वांची जाउं छुं,
अने पछी नीरांते संपूर्ण वांचुं छुं. तेमांय पारसनाथप्रभुना दशभव वांचतां तो आत्मा
अनेरा आनंदमां डोलवा लागे छे......पारसप्रभुना दशभव वांचीने दरेक वांचक कंई ने
कंई शीख्या हशे....हुं तो तेमांथी उत्तम क्षमानो धर्म’ शीख्यो छुं.
बस, आत्मधर्म वांच्या पछी अनेरा आनंदने हींचके अखूट सुविचारोमां झूलुं
छुं....अने मोडीराते ते विचारोमांथी ‘चैतन्यहीरो’ नामनी वार्ता गूंथीने आ साथे
मोकलुं छुं. (शक््यता हशे तो आ वार्ता वैशाख मासना अंकमां छापीशुं.)
उत्साही युवान पत्रमां आगळ जतां लखे छे के–
आ टाणुं आव्युं छे तो ‘चैतन्यहीरा’ नुं पारखुं करवुं जोईए. जेने खरा
धनवान बनवुं होय ते पोताना ‘चैतन्यहीरा’ ने देखे; नहितर तो गरीबनो गरीब
दुःखी–दुःखी थई संसारमां भमशे. हरिभाई! शुं आ चैतन्यहीरानी किंमत सो–बसो–
पांचसो–हजार–लाख–करोड–अजब रूपियाथी के सारी संपत्तिथी करी शकाय खरी? तमे
कहेशो के ना; जे एक ज्ञानी आपी शके, जे महावीर जेवा वीरो