Atmadharma magazine - Ank 330
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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* साधर्मीनो महान सद्गुण *
एक कवि लखे छे के ‘हिंमतथी एकलो हजारने हठावी
दीए..... ’ तेम एक वीतरागधर्मनो प्रेम बीजा हजारो दोषोने हणी
नांखे छे.
कोई मुमुक्षु–साधर्मीमां बीजी अनेक क्षतिओ देखाती होय
तोपण, वीतराग सत्यधर्म प्रत्येनो तेनो प्रेम ए एक ज सद्गुण
एवो महान छे के–ते धर्मप्रेमना बळे बीजी बधी क्षतिओ दूर
करीने ते जीव अल्पकाळमां ज धर्मात्मा अने परमात्मा बनी जशे.
माटे हे जीवो! तमे साधर्मीना गुणांशने मुख्य करीने तेनुं परम
वात्सल्य करजो.
आ संसारमां बीजा तो अनेक मित्रो मळशे पण धर्मना
प्रेमवाळा साधर्मीनो संग मळवो बहु मोंघो छे. तेथी ज्ञानीओ खरूं
ज कहे छे के–
आवो रूडो साधर्मीनो साथ ज मळीओ,
साथे रहीने आपणे आत्मकल्याण करीए रे.....
साचुं सगपण अहो! साधर्मी तणुं,
हळी–मळी आपणे सौ वात्सल्यभावे रहीए रे.....
साधर्मी–संग देखी हैडुं मारुं हरखे,
बाह्य अंतरमां सहु सहाय नित्य करीए रे.....
विभावरसनो तो त्याग ज होजो,
चिद्रुप चैतन्यने नित्य समरीए रे......
अहो! आत्महित माटे अने साधर्मीप्रेम माटे ज्ञानीओ
आनाथी विशेष बीजी कई शिखामण आपे?