पण स्त्रीओ ज हती के जेओए जगतना कोई पण प्रलोभनमां फसाया वगर
बळवानपणे धर्मनी आराधना करी, –अने मात्र पोताना जीवनने नहि अपितु
भारतने अने जैनशासनने शोभाव्युं. देहदेवळमां बिराजमान भगवान आत्मदेवने
वनमांथी सीताजीए मोकलेलो पुराण–प्रसिद्ध धर्मसन्देश आजेय भारतनी नारीने माटे
महान प्रेरक छे के–लोकनिंदाना भयथी मने तो छोडी, पण मूर्ख लोको कदाच धर्मनी पण
निंदा करे तो ते सांभळीने धर्मने कदी न छोडशो. अयोध्याना साम्राज्य करतां पण धर्म
महान छे. वनजंगल वच्चे पण धर्मनी केटली नीडरता! धर्मनुं केटलुं गौरव!
छे–कूवे पडे छे–आपघात करे छे. अरे! केटली निर्बळता! केटलुं अज्ञान? केटली
असहिष्णुता!! शुं भारतीय नारीने आ शोभे छे? नहीं; उच्च संस्कार वडे जीवननी
शोभा छे. बहेनो, आ जीवन वेडफी नांखवा माटे नथी, घणुं मोंघुं जीवन, अने तेमां
सद्गुरुनी देशना, ए तो सोना साथे सुगंधना मेळनो अवसर छे. भौतिक सुख पाछळ
दोडवानुं छोडीने आपणे आध्यात्मिकसुख– के जे आत्मामां ज छे–तेने शोधवानुं छे. सुख
अंतरमां छे. आपणामां रहेलो सुखनो खजानो ज्ञानीओ बतावे छे....एनो विश्वास
करतां सुखनो अनुभव स्वयमेव थशे.
पण अल्प देखाय छे, तो शुद्धभाव अने सम्यक्त्वादिनी तो शी वात? एवा गुणो वडे
जीवन शोभे छे. माटे बहेनो! मूर्छा छोडीने तमे जागृत थाओ ने भानमां
आवो.....सारा भारतमां ज्ञानप्रकाश फेलावनार आवा ज्ञानी–गुरु मळ्या छे; अने
आत्मानी समजणनो अपूर्व अवसर आव्यो छे. वीजळीना आ झबकारामां सम्यग्ज्ञान
समजो....(अंतमां लेखिका बहेन प्रमोद पूर्वक लखे छे के–) धन्य छे आपणा भगवती
माताओने......तेमज धन्य छे ते बहेनोने–के जेओ संसारनी ममता तजीने मुक्तिना
मार्गने अपनावी रह्या छे. भारतनी बहेनो! आपणे पण ए ज सुंदर मार्गे
जईएेेे.........(सौ. भानुमतीबेन पारेख, राजकोट)