Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९७ आत्मधर्म : १५ :
भारतनी बहेनो
एक मुमुक्षु बहेन द्वारा भारतनी बहेनो प्रत्ये उत्साहप्रेरक लखाण
एक मुमुक्षु बहेने भारतनी बहेनोने माटे प्रेरणा आपतुं लखाण लखी मोकल्युं
छे. लखाण तो लांबुं छे, अहीं तेमांथी टूंकावीने आप्युं छे–जे बहेनोने माटे उत्तम प्रेरणा
आपशे. ते बहेन लखे छे के–गुरुप्रतापे आजे आत्मधर्म द्वारा भारतना बाळकोने तो
जागृत कर्या छे ने भारतनी बहेनोने पण जगाडेल छे. गुरुदेव जे तत्त्वनो उपदेश आपे
छे ते वृद्ध के बाळक, भाई के बहेन, सौने माटे सरखो ज उपयोगी छे; लायक जीवो
तेना वांचन मनन वडे जरूर आत्महित साधशे.
गुरुदेवनो आपणा उपर महान उपकार छे के आवा तत्त्वना संस्कार आपी रह्या
छे, माताओ तथा बहेनो! तमे आ परम सत्यनो मार्ग अपनावशो तो उगता छोड
जेवा निर्दोष बाळकोने पण तेना संस्कार मळशे. तीर्थंकरोने जन्म आपनारी पण
माताओ ज हतीने!
विशेषमां तेओ लखे छे–भूतकाळमां अनेक पुस्तको–मासिको वांच्या पण
‘आत्मधर्म’ जेवुं सात्त्विक मासिक कदी वांच्युं न हतुं. अने हवे ते वांच्या पछी बीजुं
वांचवामां मन लागतुं नथी आ कोई अतिशयोक्ति नथी पण तटस्थभावे सत्य हकीकत
छे. अहा, निजघरमां आववानी वात कोने न गमे? सुखी थवानी कोण ना पाडे? गमे
तेटला देश–परदेश फरे पण अंते तो स्व–घरमां आवे त्यारे ज जीवोने शांति थाय छे.
चैतन्यमय आत्मा ज पोतानुं निजघर छे, ते ज ध्येय छे ने ते ज विसामानुं धाम छे.–
तेनुं लक्ष ‘आत्मधर्म’ करावे छे. अज्ञानना गंधाता खाडामांथी बहार काढीने ज्ञानीओ
सुखना धाममां लई जाय छे. जेनाथी मोती पाके एवा स्वाती नक्षत्रनां पाणी
सोनगढमां गुरुमुखेथी बारेमास वरसे छे; लायक जीवो ते मेधबिंदु झीलीने सम्यक्त्वरूप
मोती पकावशे. अमे पण आत्मधर्म मारफत तेनी प्रसादी चाखीने कृतार्थ थईए छीए.
गुरुदेवनी जन्मजयंती प्रसंगे भावना भावीए छीए के जुगजुग जीवो भव्योना
तारणहार....अमर रहो एमनी शीतल छत्रछाया.
नारीनो अवतार हीणो मनाय छे–परंतु महा भाग्य छे भारतीय नारीना के
जेने अध्यात्मना ऊंचा संस्कार मळे छे.....ने तीर्थंकर जेवा उत्तम रत्नोनी जे खाण छे.
भारतीय नारीनां शील–संयम वडे ईतिहासनां पानां शोभी रह्या छे.