आपशे. ते बहेन लखे छे के–गुरुप्रतापे आजे आत्मधर्म द्वारा भारतना बाळकोने तो
जागृत कर्या छे ने भारतनी बहेनोने पण जगाडेल छे. गुरुदेव जे तत्त्वनो उपदेश आपे
छे ते वृद्ध के बाळक, भाई के बहेन, सौने माटे सरखो ज उपयोगी छे; लायक जीवो
तेना वांचन मनन वडे जरूर आत्महित साधशे.
जेवा निर्दोष बाळकोने पण तेना संस्कार मळशे. तीर्थंकरोने जन्म आपनारी पण
माताओ ज हतीने!
वांचवामां मन लागतुं नथी आ कोई अतिशयोक्ति नथी पण तटस्थभावे सत्य हकीकत
छे. अहा, निजघरमां आववानी वात कोने न गमे? सुखी थवानी कोण ना पाडे? गमे
तेटला देश–परदेश फरे पण अंते तो स्व–घरमां आवे त्यारे ज जीवोने शांति थाय छे.
चैतन्यमय आत्मा ज पोतानुं निजघर छे, ते ज ध्येय छे ने ते ज विसामानुं धाम छे.–
तेनुं लक्ष ‘आत्मधर्म’ करावे छे. अज्ञानना गंधाता खाडामांथी बहार काढीने ज्ञानीओ
सुखना धाममां लई जाय छे. जेनाथी मोती पाके एवा स्वाती नक्षत्रनां पाणी
सोनगढमां गुरुमुखेथी बारेमास वरसे छे; लायक जीवो ते मेधबिंदु झीलीने सम्यक्त्वरूप
मोती पकावशे. अमे पण आत्मधर्म मारफत तेनी प्रसादी चाखीने कृतार्थ थईए छीए.
गुरुदेवनी जन्मजयंती प्रसंगे भावना भावीए छीए के जुगजुग जीवो भव्योना
तारणहार....अमर रहो एमनी शीतल छत्रछाया.
भारतीय नारीनां शील–संयम वडे ईतिहासनां पानां शोभी रह्या छे.