Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ५० : आत्मधर्म : वैशाख : २४९७
परमेश्वर एटले शुद्धआत्मा; तेनुं स्वरूप ओळखतां पोतानो आत्मा ज
परमेश्वर स्वरूपे देखाय छे. तेने ईश्वरदर्शन के सम्यग्दर्शन कहेवाय.
(अरिहंत परमेश्वरना आत्माने ओळखतां तेमना जेवो पोतानो
शुद्धआत्मा ओळखाय छे–ए वात प्रवचनसारनी ८० मी गाथामां बहु
सरस समजावी छे.
६. प्रश्न:– लोक कई रीते बनेलो छे? (चतुरभाई–उखरेली)
उत्तर:– लोक बनेलो नथी के लोक नामनी कोई एक वस्तु नथी; पण जगतमां
अनादिथी सत् एवा अनंत जीव अने अजीवनो जे समूह छे तेने ‘लोक’
कहेवाय छे. जेम जीवादि पदार्थो कोईना बनावेला नथी तेम लोक पण
कोईनो बनेलो नथी.
७. प्रश्न:– सूर्य–चंद्र ते देवनां विमानो छे ने ते मेरूपर्वतनी आसपास नित्य प्रदक्षिणा
करे छे–ए खरूं; पण मेरूपर्वत तो मनुष्यलोकमां आवेल छे, ने स्वर्ग लोक
तो मेरूथी ऊंचे छे; तो ते सूर्य–चंद्र देवो मनुष्यलोकमां मेरूने कई रीते
प्रदक्षिणा करे? (उखरेली)
उत्तर:– मेरुथी ऊंचे जे स्वर्गलोक आवेल छे, तेमां वैमानिक देवो रहे छे. ए सिवाय
ज्योतिषी–व्यंतर अने भवनवासी देवो छे–तेओ मध्यलोकमां रहे छे. सूर्य–
चंद्र ए ज्योतिषी देवो छे, अने मध्यलोकमां लगभग ७०० थी ९००
योजननी ऊंचाईमां तेमनुं गमन छे. मेरूपर्वत तो एक लाख योजन ऊंचो
छे. एटले सूर्य–चंद्र तो मेरुना १०० मा भाग जेटली ऊंचाईए पण नथी.
सूर्य–चंद्र करतां मेरुनी ऊंचाई सोगणी वधु ऊंची छे. आ उपरथी ख्याल
आवी शकशे के सूर्य–चंद्र मनुष्यलोकमां मेरुने कई रीते प्रदक्षिणा करे छे.
(आ आपणा मनुष्य– लोकना सूर्य–चंद्रनी वात करी. बाकी तो मध्यलोकमां
असंख्यात (करोडो अबजो नहि पण असंख्यात) सूर्य–चंद्र छे.
८. प्रश्न:– भरतक्षेत्रमां आदिनाथ ऋषभदेव तीर्थंकर कया आरामां थया?
उत्तर:–
त्रीजा आराना अंतभागमां थया.
९. प्रश्न:– ऋषभदेव तीर्थंकर पहेलां आरामां केम न थाय?
उत्तर:
पहेला आरानी रचना भोगभूमि (स्वर्ग जेवी) होय छे; जेम स्वर्गमां
मोक्ष नथी तेम पहेला आरामां पण मोक्षसाधना होती नथी. भगवाननो
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