Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 66 of 69

background image
: वैशाख : २४९७ आत्मधर्म : ६३ :
पोरबंदरमां मंगल जन्मोत्सव
(वैशाख सुद बीजनो आंखे देख्यो अहेवाल)

आजे छे वैशाख सुद बीज.....आकाशमांथी जाणे आनंद वरसी रह्यो छे, दरियो
उल्लसी–उल्लसीने जाणे अभिषेक करवा उमगी रह्यो छे, हजारो भक्तजनो–कोई
आकाशमार्गे तो कोई जमीन मार्गे उत्सव उजववा आवी रह्या छे....ए उत्सव छे
जगमंगलकारी कहान गुरुराजनी मंगल जन्मजयंतिनो. पोरबंदर भाग्यवान बन्युं छे.
आ ८२ मी जन्मजयंतिनो उत्सव उजववा.
जाणे आखी अयोध्या नगरी शणगाराती होय एम सर्वत्र शणगारथी श्रीमंडप
शोभी रह्यो छे; मंडपमां पारसप्रभु बिराजी रह्या छे, चारे कोर आनंद–मंगलनां गीत
गूंजी रह्या छे. ८२ कमानोथी सुसज्जित रस्तो राह जोई रह्यो छे मुक्तिपुरीना
पथिकनी......
मंगल वाजिंत्रना नादे गुरुदेवना आगमननी वधाई आपी, जयजयकारथी
मंडप गूंजी ऊठ्यो.... गुरुदेवे श्रीमंडपमां पधारीने प्रथम भगवान श्री पारसनाथ
जिनेन्द्रदेवना भक्तिथी दर्शन करीने अर्घवडे पूजन कर्युं.
८२ दरवाजामांथी पसार थईने गुरुदेव मंडपमां बिराज्या, ने जन्मवधाई शरू
थई....एक–बे पांच–पचास नहि परंतु एक साथे हजार–हजार हाथ ऊंचा थईने
गुरुदेवने वधाववा उत्सुक हता....सौए उत्तम भावपूर्वक, उत्तम भावना पूर्वक,
धर्मप्राप्ति माटे गुरुदेवना मंगल आशीष लेतांलेता, ने ‘चिरंजीवो’ ना मंगल आशीष
देतादेतां, श्रीफळ धरीने गुरुदेवने अभिनंद कर्या.....हैयाना उमळकाथी नृत्य–गान–
जयजयकारवडे सौए आनंद व्यक्त कर्यो. उपरथी जाणे अमृत झरतुं हतुं...धीरगंभीर
गुरुदेवनी प्रसन्न–प्रशांत मुद्रानुं दर्शन करीने हृदय तृप्त–तृप्त थतुं हतुं; अहा, मुक्तिनो
मार्ग बतावनारा आवा गुरु अमने मळ्‌या....एमना मंगल अवतारनी साथे अमारा
मोक्षनो पण अवतार थयो. आवी आत्मिक उर्मिपूर्वक जन्मोत्सव उजवायो.
जन्मोत्सव–प्रसंगे बहारथी हजार उपरांत भक्तजनो उत्सवमां भाग लेवा
आव्या हता....पोरबंदरनी जनताए पण हजारोनी संख्यामां लाभ लीधो हतो.
पोरबंदरमां जन्मोत्सव उजववानुं महाभाग्य मळतां पोरबंदरना मुमुक्षुओने, तेमज
शेठश्री भुरालाल–