Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९७ आत्मधर्म : ६५ :
राजकोटमां मंगलाचरण
पोरबंदरमां मंगल जन्मोत्सव उजवाया बाद वैशाख सुद त्रीजे पू. गुरुदेव गोंडल
पधार्या अने त्यां बे दिवस रहीने वैशाख सुद पांचमना रोज राजकोट शहेर पधार्या;
उत्साहपूर्वक मंगळ स्वागत थयुं; सीमंधरनाथना दर्शन बाद भावभीना मंगलप्रवचनमां
कह्युं के–
आत्मा ज्ञायकतत्त्व छे; उपयोग तेनुं लक्षण छे, ते उपयोगलक्षणवडे आत्माने
ज्यां लक्षमां लीधो त्यां ते उपयोगने कोई हरण करी शकतुं नथी. भगवान कहे छे के
जीवनुं लक्षण उपयोग छे–
सव्वण्हुणाणदिठ्ठो जीवो उवओगलक्खणो णिच्चं।
भगवान सर्वज्ञदेवे जीव सदा उपयोगलक्षण जोयो छे. जे उपयोग अंतरमां
पोताना कारण परमात्माने लक्ष्य करे तेने साचुं लक्षण कहेवाय छे. जेनुं लक्षण उपयोग छे
तेना उपर लक्ष करीने जे उपयोग शुद्ध थयो ते कोईथी हरातो नथी, दबातो नथी. ते
उपयोग वच्चे भंग पाड्या वगर परमात्मपदने प्राप्त करशे.
‘उपयोग’ तेने कहेवाय के जे पोताना आत्माने अवलंबे. बहारमां राग
द्वेषादिने अवलंबीने जे रोकाय तेने तो अनुपयोग कहे छे, तेने आत्मानुं लक्षण नथी
कहेता. आत्माने जे पकडे तेने ज आत्मानुं लक्षण कहेवाय, केमके लक्ष्यथी जुदुं लक्षण रहेतुं
नथी. जे उपयोग अंतरमां वळीने द्रव्य साथे एक थयो ते उपयोग कदी फरे नहि. द्रव्यनो
नाश थाय तो तेनो नाश थाय. –ते उपयोग कदी हणाय नहि. आवो अखंड उपयोग
प्रगट्यो ते मंगळ छे, तेमां हवे भंग पडे नहीं. स्वभावनो रंग लाग्यो त्यां हवे वच्चे
बीजानो रंग आवे नहि. अनंत धर्मनो धणी एवो आत्मानो स्वभाव, तेने ज्यां
उपयोगमां लीधो त्यां ते उपयोगमां हवे बीजो भाव आववा न दउं. आवो उपयोग प्रगट
करीने हे नाथ! अमे आपना पगले मोक्षना मार्ग चाल्या आवीए छीए, आवी अमारा
कूळनी रीत छे. तेमां वच्चे भंग पडवानो नथी. ते उपयोग अप्रतिहतपणे परमात्मपद
प्रगट करशे. –ते मंगळ छे.
राजकोटमां पू. गुरुदेव १प दिवस सुधी (ता. २९ एप्रिलथी १३मे सुधी)
बिराजवाना छे. सवारे श्री नियमसार तथा बपोरे समयसारनी ४७ शक्ति उपर प्रवचन
चाले छे. रात्रे तत्त्वचर्चा थाय छे.
राजकोट पछी सुरेन्द्रनगर तथा अमदावाद थईने जयपुर पधारशे. रविवार ता.
१६ ना रोज त्यां स्वागत थशे.