Atmadharma magazine - Ank 332
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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हृदयना उद्गारपूर्वक कहे छे के–
‘अमे मुनिओना चरणना दास छीए.’
श्री पंचपरमेष्ठी भगवंतो प्रत्येनी भक्तिपूर्वक
कानजीस्वामी घणी वार कहे छे के अहो! मुनिवरो तो
आत्माना परम आनंदमां झुलता झुलता मोक्षने साधी रह्या
छे. आत्माना अनुभवपूर्वक दिगंबर चारित्रदशावडे मोक्ष
सधाय छे. दिगंबर साधु एटले साक्षात् मोक्षनो मार्ग... ए तो
नाना सिद्ध छे... अंतरना चिदानंद स्वरूपमां झुलतां झुलतां
वारंवार शुद्धोपयोगवडे निर्विकल्प आनंदने अनुभवे छे.
पंचपरमेष्ठीनी पंक्तिमां जेमनुं स्थान छे एवा मुनिना
महिमानी शी वात! एवा मुनिनुं दर्शन मळे ते पण महान
आनंदनी वात छे. एवा मुनिवरोना तो अमे दासानुदास
छीए... तेमना चरणोमां अमे नमीए छीए... धन्य ए
मुनिदशा! अमे पण एनी भावना भावीए छीए.