Atmadharma magazine - Ank 332
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : जेठ : २४९७
सांज बंने (सौराष्ट्र करतां) अडधो कलाक वहेला थाय, एटले सवापांच वागतां सांजनुं
भोजन गुरुदेवे विमानमां ज करी लीधुं... आकाशमां आहारदाननो प्रसंग देखी भक्तो
खुशी थया... एवामां ते जयपुर आवी गयुं... साडापांच वागे विमान जयपुर मथके
उतर्युं..... शेठश्री पूरणचंदजी गोदिकानी अध्यक्षतामां जयपुरना मुमुक्षुओए उमंगथी
स्वागत कर्युं... ने गुरुदेव साथेनी आ विमान यात्रा पूरी थई... (लगभग आप आ
वांचता हशो त्यारे ता. प जुने, गुरुदेव यात्रिको सहित फरीने जयपुरथी अमदावादनी
गगनयात्रा करी रह्या हशे... संतत्रिपुटी साथे गगनयात्रानो जय हो!)
* * *
जैनधाम जयपुर नगरीमां–
जयपुर नगरीमां बीजे दिवसे वैशाख वद छठ्ठने रविवारे शहेरना बडा
मंदिरजीमां दर्शन कर्यां बाद, गुरुदेवनुं भव्य स्वागत थयुं. जयपुरना तेम ज
बहारगामथी आवेला हजारो मुमुक्षुओए भावभीनुं स्वागत कर्युं. एक तो जयपुर
नगरी पोते ज सुशोभित छे, तेमां वळी अनेक ठाठ – माठ सहित उल्लासपूर्ण भावथी
स्वागत थयुं, ते वखते जयपुर खरेखर जैनपुरी ज बन्युं हतुं... गुजराती लोकोनो सफेद
पोषाक अने राजस्थानी लोकोनो पचरंगी पोषाक भेळसेळ थईने साधर्मी मिलननुं
सुंदर वातावरण सर्जातुं हतुं, ने एम बतावतुं हतुं के धार्मिक भावनामां देश वेषना
कोई भेद नडता नथी............ साधर्मी मिलननुं सुंदर द्रश्य जोईने आनंद थतो हतो.
नगरीना मुख्य रस्ताओ पर फरतुं फरतुं. पचास जेटला द्वारो (अकलंक द्वार,
कुंदकुंद द्वार, टोडरमल द्वार, जयचंद द्वार, वगेरे) वच्चेथी पसार थईने जैन विद्वानो ने
संतोनो महिमा फेलावतुं स्वागत रामलीला मेदानमां पहोंच्युं ने त्यां गुरुदेवे मांगलिक
संभळावीने चैतन्यतत्त्वनो परम महिमा प्रसिद्ध कर्यो.
जयपुरमां शेठश्री पूरणचंदजी गोदिकाना भवनमां गुरुदेव विराजमान छे.... ने
सवार बपोर पं. टोडरमल – स्मारक भवनना विशाळ सुसज्ज होलमां प्रवचन द्वारा
अध्यात्मरस वरसावी रह्या छे. जयपुरनी अने गामेगामनी मुमुक्षु जनता आनंदथी
लाभ लई रही छे. प्रवचन पछी ठेरठेर वीतराग विज्ञानना शिक्षण वर्गो चाली रह्या छे.
जयपुरमां जुदा जुदा वीस जेटला शिक्षण वर्गो चाली रह्या छे ने नाना–मोटा हजारो
जिज्ञासुओ वीतरागी विद्यानो लाभ लई रह्या छे. वीतराग विज्ञानना प्रचारनो मोटो
उत्सव चाली