: जेठ : २४९७ आत्मधर्म : २३ :
हवे गुजरातनी सरहद पसार करीने राजस्थानमां प्रवेशी रह्या छीए.... ने
लगभग आबु परथी पसार थई रह्या छीए त्यारे, पू. बंने माताओए आनंद प्रमोद
पूर्वक ज्ञानगगनमां विहरनारा गुरुदेवना जयजयकार करीने भक्ति गगडाववी शरू
करी–
* जय बोलो जय बोलो श्री वीरप्रभुकी जय बोलो.....
जय बोलो जय बोलो गगनविहारी गुरुकी जय बोलो.....
* हिलमिलकर सब भक्तो चालो.... जिनेंद्रोके धाममें.....
गगनविहारी यात्रा थाये.... कहानगुरुकी साथमें.....
गुरुदेवकी साथे चालो.... जैनपुरीके धाममें.....
जैनपुरीके धाममें.... जिनेन्द्रों के धाममें.....
टोडरमलके गाममें.... श्री गुरुवरकी साथमें.....
* तुज पाद पंकज ज्यां थया ते देशने पण धन्य छे;
तारा क््यां दर्शन अहा! ते लोक पण कृतपुण्य छे.
* सागर ऊछळ्यो ने जाणे लहेरीओ चडी,
मारा गुरुजीनी वाणी एवा गगने अडी.....
––एम अनेकविध भक्ति करतां करतां जयपुर तरफ जई रह्या छीए. वैशाख
मासनी धोमधखती गरमीना चार वाग्या छे, पण अमने सौने तो ठंडक ज अनुभवाय
छे.... गुरुचरणनी शीतल छायामां तो चैतन्यनी ठंडक ज होय ने? – ज्यां जगतना
कोई आताप न पहोंची शके त्यां सूर्यनो आताप क््यांथी पहोंचे?
हजी तो भक्तिनी धून जामी रही छे त्यां तो विमान नीचे ऊतरवा लाग्युं....
केमके वच्चे उदेपुर आव्युं.... उदेपुरना विमान मथके सेंकडो मुमुक्षु भक्तजनोए
गुरुदेवना दर्शन करीने, गुरुदेव सहित यात्रिकोनुं स्वागत कर्युं.... गुरुदेवे आनंदपूर्वक
चैतन्यतत्त्वनो अद्भुत महिमा संभळाव्यो... अहा, गुरुदेवे तो आकाशमांथी ऊतरीने
अमने आत्मस्वभाव संभळाव्यो! – एम उदेपुरना मुमुक्षुजनो खूब प्रसन्न थया.
उदेपुर लगभग अडधी कलाक रोकाईने साडाचार वागे फरी गगनविहार शरू
थयो..... भक्ति पण चालु थई... एम संतो साथे आनंद करतां करतां, उत्तम भावना
भावतां भावतां जैनपुरी – जयपुर तरफ जई रह्या छीए... जयपुर तरफ सवार अने