: जेठ : २४९७ आत्मधर्म : २५ :
रह्यो छे. ज्यां जुओ त्यां वीतराग विज्ञाननुं भणतर अने तेनी ज चर्चा देखाय छे.
सवारमां तो सीमंधर भगवान सन्मुख सेंकडो भक्तोनी भीड जामे छे ने पूजन
भक्तिथी आखो मंडप गूंजी ऊठे छे. चारेकोर धर्मवर्षा चाली रही छे.
आवी सरस धर्मवर्षा देखीने वर्षाने पण जाणे एम थयुं के अरे, मारुं स्थान आ
धर्मवर्षा लई लेशे के शुं? एटले ते जलवर्षा तो धमधमाट करती दोडती आवी पण ते
आवी पहोंचे त्यार पहेलांं तो गुरुकहानना मुखेथी धर्मवृष्टि शरू थई चुकी हती अने
लोको ते आनंदथी झीली रह्या हता. आथी ते जलवर्षाने पण कबुल करवुं पड्युं के
जीवोने मारा करतां पण आ धर्मवर्षानी वधारे जरूर छे.... तेथी तेणे पोतानुं स्थान
धर्मवर्षाने सोंपी दीधुं. अत्यारे जयपुरमां धोधमार धर्मवर्षा थई रही छे ने मुमुक्षु जीवो
ते आनंदपूर्वक झीलीने आत्मामां धर्मना बीज वावी रह्या छे........
[जयकार गाजी रह्या छे वीतराग विज्ञानना जयपुर शहेरमां]
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जयपुर शहेरनुं धर्मवातावरण अहीं रजु कर्युं छे.... हजी उत्सव चाली रह्यो छे ने
गुरुदेव त. ४–६–७१ सुधी जयपुर बिराजमान छे, एटले हवे पछीना विशेष प्रसंगोना
समाचार आवता अंकमां आपीशुं. ता. पांचमी जुने, गुरुदेव जयपुरथी अमदावाद
पधारशे; ता. ६ थी ९ भावनगर पधारशे; अने ता. दशमी जुने, सोनगढमां मंगल
पधरामणी थशे. श्रावण मासनो प्रौढ शिक्षणवर्ग सोनगढमां चालशे.
सुखथी भरपूर चैतन्यलक्ष्मीने लक्षमां ले
दुनियाना वैभव करतां आत्मानो वैभव जुदी जातनो छे. अरे, संसारमां
लक्ष्मी माटे जीवो केटला दगा–प्रपंच ने राग–द्वेष करे छे? तेमां जीवन गुमावे छे ने
पाप बांधे छे. भाई, तारा स्वघरनी चैतन्यलक्ष्मी महान छे, तेनी संभाळ करने!
तेमां क््यांय दगा– प्रपंच नथी, राग–द्वेष नथी, कोईनी जरूर नथी, छतां ते महा
आनंदरूप छे. बहारनी लक्ष्मी मळे तोपण तेमांथी सुख मळतुं नथी. आ
चैतन्यलक्ष्मी पोते महा आनंदरूप छे. आवो अपार वैभव आत्मामां पोतामां भर्यो
छे. – एने लक्षमां लेतां सुख छे.