: २६ : आत्मधर्म : जेठ : २४९७
जयपुर शहेर – प्रवचनो
जयपुर शहेरमां वैशाखवद छठ्ठथी शरू करीने २० दिवसनो
धार्मिक शिक्षणनो जे भव्य समारोह चाली रह्यो छे तेमां श्री टोडरमल
– स्मारकभवनमां पू. श्री कानजीस्वामीनां अध्यात्म–प्रवचनोनो लाभ
हजारो श्रोताजनो लई रह्या छे. प्रवचनमां सवारे प्रवचसार गाथा
१थी अने बपोरे समयसार गाथा छठ्ठीथी शरू थयेल छे. तेमांथी थोडुंक
दोहन अहीं आप्युं छे.
– ब्र. ह. जैन
शिष्य एम पूछे छे के हे प्रभो! शुद्ध आत्मानुं स्वरूप केवुं छे? आनंदनो पिपासु
शिष्य बीजुं कांई नथी पूछतो, पण जेने जाणवाथी आनंद थाय एवा शुद्धआत्मानुं
स्वरूप ज पूछे छे. मारा आत्माना शुद्धस्वरूप सिवाय बीजा कोई साथे मारे प्रयोजन
नथी.– आम आत्मानो अभिलाषी थईने तेनुं स्वरूप पूछनार शिष्यने आत्मानुं
शुद्धस्वरूप समजाववा माटे आ छठ्ठी गाथा आचार्यदेव कहे छे:–
नथी अप्रमत्त के प्रमत्त नथी, जे एक ज्ञायकभाव छे;
ए रीते शुद्ध कथाय, ने जे ज्ञात ते तो ते ज छे.
जुओ, आ मांगळिक गाथा छे, कुंदकुंदाचार्यदेवे आ समयसारमां अपूर्व मांगळिक
कर्युं छे. शरूआतमां शुद्धआत्माना प्रतिबिंबरूप एवा सिद्धभगवंतोने आत्मामां ज
स्थापीने नमस्कार कर्यां. पछी निजवैभवथी आत्मानुं शुद्धस्वरूप बताववानी प्रतिज्ञा
करी, पण ते कोने बतावे छे? जे शिष्य चार गतिनां दुःखथी थाकीने शुद्ध आत्मानो
अभिलाषी थयो छे, तेने आ छठ्ठी गाथाना भाव समजवा ते अपूर्व मंगळ छे, एटले
गाथा पण मंगळ छे.
सीमंधर तीर्थंकर अत्यारे पूर्व विदेहमां साक्षात् बिराजमान छे;