Atmadharma magazine - Ank 332
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९७ आत्मधर्म : २७ :
बयाना शहेर (राजस्थान) मां सवा पांचसो वर्ष प्राचीन वर्ष प्राचीन एक प्रतिमाजी
छे, तेना दर्शन चार वर्ष पहेलांं (सं. २०२३ मां) कर्यां हता; तेमने
‘विदेहक्षेत्रके
धर्मकर्ता जीवन्तस्वामी श्री सीमधरस्वामी’ कह्या छे. एवा साक्षात् विद्यमान तीर्थंकर
सीमंधर परमात्माना दर्शन श्री कुंदकुंदाचार्ये विदेहमां जईने कर्यां हता; सदेहे विदेहमां
जईने परमात्मानो भेटो करनारा एवा महान आचार्यदेवे आ समयसारनी रचना
करी छे.
तेमां छठ्ठी गाथामां कहे छे के आत्मा छे ते एक ज्ञायकभाव छे; ते ज्ञायक
स्वभावनी द्रष्टिथी जोतां आत्मा कदी शुभ–अशुभ विभावो रूपेपरिणमतो नथी.
प्रमत्तपणुं के अप्रमत्तपणुं, अथवा संसारीपणुं के सिद्धपणुं, एवा भेदोना लक्षे आत्मानुं
शुद्ध स्वरूप पकडातुं नथी; माटे कहे छे के प्रमत्त के अप्रमत्त ते आत्मा नथी, एक
ज्ञायकभाव ते आत्मा छे. आवा ज्ञायकस्वभावपणे जे पोते पोताने अनुभवे ते
आत्माने ‘शुद्ध’ कहीए छीए. शुद्धतत्त्व ज बधा तत्त्वोमां सर्वोपरी श्रेष्ठ साररूप छे,
अने ते शुद्धतत्त्व धर्मीनां अंतरमां ध्येयपणे जयवंत वर्ते छे.
‘जयति समयसारः सर्व
तत्त्वैक सारः, सुखजलनिधि पूरः कलेशवाराशि पाराः।’ जुओ, जय–पुरना मंगलमां
आत्माना जयनी अने सुखना पूरनी वात आवी; सर्वे तत्त्वोमां उत्तम एवो एक शुद्ध
आत्मा तेनो
जय छे, अने ते सुखजलनुं पूर छे. ज्ञायकभाव कहेतां परमस्वभाव
द्रष्टिमां आवे छे, उदयादि चार भावोना भेद तेमां आवता नथी. अंतर्मुख थईने आवा
आत्मानी उपासना जेणे करी तेणे शुद्धआत्मानी सेवा करी कहेवाय छे. अनुभवमां
आव्या विना ‘आ शुद्ध छे’ एम कहेशे कोण? अनुभव थयो त्यारे खबर पडी के ‘हुं
आवो शुद्ध छुं.’ अतीन्द्रि आनंदना अनुभवमां ‘शुद्ध’ नो नमूनो आव्यो त्यारे ‘आत्मा
आवो शुद्ध छुं’ एम जाण्युं अने तेने ज शुद्धआत्मा कह्यो. जे शुभ–अशुभना वेदनमां ज
ऊभो छे तेने तो शुद्धआत्मानी खबर नथी. शुद्धआत्माना अनुभव वडे जेणे मोह–
विकारने जीती लीधा: (–नष्ट कर्यां–) ते जैन छे. –
जिन सो ही है आतमा, अन्य होइ सो कर्म;
ये ही वचनसे समझले जिनप्रवचनका मर्म।
सर्वज्ञ परमात्माने जे अनंत आनंद प्रगट्यो ते क््यांथी प्रगट्यो? आत्मा