Atmadharma magazine - Ank 332
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : जेठ : २४९७
ज अनंत आनंदनी खाण छे. आवा आत्माने जेणे देख्यो – अनुभव्यो – परथी भिन्न
पणे उपास्यो, तेने ज हक्क् छे के ‘आत्मा शुद्ध छे’ – एम कहे छे. पोते जाण्या वगर
‘शुद्ध छे’ ए वात लाव्यो क््यांथी? माटे जेणे चारगतिना दुःखथी छूटवुं होय ने
आत्माना आनंदनो अनुभव करवो होय तेणे परभावोथी भिन्न पोताना सच्चिदानंद
शुद्धात्माने जाणवो.
आचार्यदेव कहे छे के अमे आ शुद्धात्मानुं स्वरूप अद्धरथी नथी कहेता, पण
आत्माना आनंदने प्रचूरपणे अनुभवनारा श्री गुरुओए अमने जे शुद्धात्मानो उपदेश
आप्यो तेना प्रसादथी, अने अमारा आत्माना स्वानुभवथी अमने जे निज वैभव
प्रगटयो छे ते निजवैभवना बळथी हुं आ समयसारमां शुद्धात्मानुं स्वरूप कहीश. अने
तमे श्रोताजनो पण तमारा आत्माना स्वानुभवथी ते प्रमाणे करजो.
केवो छे शुद्धआत्मा? ज्ञायकभाव छे, ते परभावोथी रहित छे अने कर्मोनी
उपाधि वगरनो छे. छतां अज्ञानीओने ते परभावथी सहित देखाय छे; अज्ञानीओनो
ते प्रतिभास खरेखर भवनुं बीज छे. रागथी भिन्न शुद्धज्ञायकभावपणे पोताने
अनुभववो ते मोक्षनुं बीज छे; ने रागपणे ज पोतानो अनुभव ते संसारनुं बीज छे.
ए वात पुरुषार्थसिद्धिउपायनी १४मी गाथामां अमृतचंद्राचार्यदेवे करी छे. एनां मूळियां
ते आ समयसारमां भर्या छे.
समयसारमां आत्मानो अद्भुत वैभव वर्णव्यो छे. तेमां एम कहे छे के आत्मा
पोते पोताने स्वसंवेदनगम्य थाय एवी स्पष्ट प्रकाशमान ज्योति छे. आत्माने पोताने
जाणवा माटे कोई बीजा दीवानी जरूर पडे एवो ते नथी, ते पोते स्वयं प्रकाशमान छे,
एटले पोताना ज ज्ञानप्रकाशवडे पोते पोताने प्रत्यक्ष प्रकाशे छे – जाणे छे. मति–श्रुत
ज्ञानमां पण आत्मानुं सीधुं वेदन करवानी ताकात छे.
सांभळवानो पण प्रेम न आवे तो तेने शुं लाभ? भाई, आवो मार्ग पामीने पोताना
आत्माना महिमाने लक्षमां लेतां तारा भवनो अंत आवी जशे.
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