Atmadharma magazine - Ank 332
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९७ आत्मधर्म : २९ :
हवे आ प्रवचनसार छे. प्रवचन एटले सर्वज्ञ भगवाननी उत्कृष्ट वाणी, तेना
साररूप जे सिद्धांत, तेनुं आमां वर्णन छे. कुंदकुंदाचार्यदेवे सर्वज्ञ परमात्मानी वाणीरूप
प्रवचन साक्षात् सांभळीने तेनो सार आ परमागममां गूंथ्यो छे. तेना मंगलाचरणमां
श्री अमृतचंद्रस्वामी ज्ञानानंदस्वरूप उत्कृष्ट आत्माने नमस्कार करे छे. केवो छे ते
आत्मा? – के पोताना अनुभवथी जे प्रसिद्ध छे; तेनी प्रसिद्धि कोई रागवडे थती नथी,
ते तो पोताना अनुभवथी ज प्रसिद्ध थाय छे. अनंता सिद्ध भगवंतो थया तेओ
आत्मानो अनुभव करी करीने ज सिद्ध थया छे. पहेलांं सम्यग्दर्शनमां पण आत्मा
स्वानुभव–प्रत्यक्ष थाय छे. आवा स्वानुभवप्रत्यक्ष चैतन्यस्वरूप परम आनंदमय
आत्माने लक्षमां लईने तेमां वळवुं – ढळवुं – नमवुं ते अपूर्व मंगळ छे.
आत्मानुं अनेकान्तमय ज्ञान–तेज जगतना स्वरूपने प्रकाशित करे छे ने
मोहअंधकारने नष्ट करे छे. द्रव्य–गुण–पर्यायरूप आत्मानुं स्वरूप पोताथी सत् छे, ने
परभावो तेमां असत् छे – एम अस्ति – नास्तिरूप अनेकान्तवडे आत्मानुं स्वरूप
प्रकाशे छे. आवुं अनेकान्तमय तेज जयवंत छे. अहो! सर्वज्ञ परमात्माए अनेकान्तवडे
प्रकाशेलुं आत्मस्वरूप लक्षमां लेतां मिथ्यात्वादि मोहनो लीलामात्रमां नाश थई जाय छे.
जे भव्य जीवो परम आनंदना पिपासु छे तेमने माटे आ शास्त्र रचाय छे.
अतीन्द्रिय ज्ञान ने अतीन्द्रिय आनंदस्वरूप आत्मानी वात सांभळतां जेना हृदयमां
आत्मानो झणझणाट जागी जाय – एवा परम आनंदना पिपासु भव्य जीवोने माटे
आ शास्त्रमां अमे ज्ञानानंदस्वरूप आत्मा बतावशुं. अहो, आ चैतन्यना अतीन्द्रिय
आनंदनी वीणा सांभळतां जिज्ञासुनो आत्मा डोली ऊठे छे.
हवे, पहेली पांच गाथानो प्रारंभ थाय छे. त्यार पहेलांं तेना उपोद्घातमां
अमृतचंद्रस्वामी शास्त्रकार–मुनिराजनी अंतरंगदशानुं वर्णन करे छे. शास्त्रकार तो
मुनिराज छे टीकाकार पण मुनिराज छे. हजार वर्ष पहेलांं थयेला एक मुनिराजनी दशा,
हजार वर्ष पछी पण बीजा मुनि ओळखी ल्ये छे. – एवी स्वसंवेदन ज्ञाननी ताकात छे.
पोताना आत्माने प्रत्यक्ष करनारा धर्मात्मा बीजा धर्मात्मानी दशाने पण अनुमान
वगेरेथी ओळखी ल्ये छे. जेने पोतानो आत्मा प्रत्यक्ष थयो नथी, पोते पोताने ज
ओळख्यो नथी, ते बीजा आत्मानी साची ओळखाण करी शकतो नथी. – केमके प्रत्यक्ष
वगरना एकला अनुमानथी के ईंद्रियज्ञानथी आत्मा जणाय नहीं.