Atmadharma magazine - Ank 332
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : जेठ : २४९७
प्रश्न: – मति – श्रुतज्ञान पण आत्माने प्रत्यक्ष करी शके?
उत्तर: हा; स्वसंवेदनवडे मति–श्रुतज्ञान पण आत्माने स्वानुभव–प्रत्यक्ष करी
ल्ये छे; अने त्यारे ज सम्यग्दर्शन तथा धर्मनी शरूआत थाय छे. अतीन्द्रिय आनंदना
वेदन सहित आवुं स्वसंवेदन – प्रत्यक्ष चोथा गुणस्थाने थाय छे.
अहीं अमृतचंद्र मुनिराज पोतानी पूर्वे एक हजार वर्ष पहेलांं थयेला
कुंदकुंदाचार्यदेवनी दशाने ओळखीने तेनुं वर्णन करतां कहे छे के अहा, आ शास्त्रकार
आचार्य भगवानने संसार–समुद्रनो किनारो एकदम नजीक आवी गयो छे, ने
सिद्धद्वीपमां पहोंचवानी तैयारी छे. ज्यारे अमृतचंद्राचार्य आ टीका रचे छे त्यारे कुंदकुंद
स्वामीनो जीव स्वर्गमां चोथा गुणस्थाने बिराजे छे; पण हजार वर्ष पहेलांं ज्यारे
प्रवचनसार – शास्त्र रच्युं त्यारे तेमनी केवी दशा हती! ते तेमणे अनुमानवडे ओळखी
लीधी छे: अहो! आत्माना ज्ञाननी अपार ताकात छे, ते पोताने प्रत्यक्ष करीने बीजाने
पण निःशंक जाणी शके छे एकली बहारनी दिगंबर दशा ते कांई मुनिपणुं नथी, मुनिना
आत्मानी अंतरनी दशा केवी अलौकिक होय छे ते ओळखी शकाय छे; अने एवी
ओळखाण करीने अहीं अमृतचंद्राचार्य तेनुं वर्णन करे छे. जुओ तो खरा, तेमने केटलुं
बहुमान छे! पोते पण मुनि छे, ते बीजा मुनिराजनी ओळखाण पूर्वक कहे छे के अहो!
कुंदकुंदस्वामी परमदेव तो संसारना किनारे पहोंची गयेला छे, ने मोक्षद्वीपमां
पहोंचवानी तैयारी छे; तेमने सातिशय विवेकज्योति प्रगटी छे. अनेकांतरूप वीतरागी
विद्यामां तेओ पारंगत छे; समस्त पक्षनो परिग्रह छोडीने तेओ मध्यस्थ छे; पोते
पंचपरमेष्ठीनी पंक्तिमां बेसीने मोक्ष लक्ष्मीने ज उपादेय करी छे, वच्चे शुभराग आवी
पडे तेने कषायकण समजीने हेय कर्यो छे; आ रीते स्वयं मोक्षमार्गरूपे परिणम्या छे,
तेओ साक्षात् शुद्धोपयोगरूप थवानी प्रतिज्ञा करता थका पंचपरमेष्ठी भगवंतोने
नमस्कार करे छे. – (प्रवचनसार गाथा १ थी प)
आचार्यदेव मंगलाचरणमां श्री महावीर भगवान सहित पंचपरमेष्ठी
भगवंतोने नमस्कार करे छे: अहो, प्रवर्तमान तीर्थना नायक श्री वर्धमान स्वामीने
नमस्कार करुं छुं. निश्चयथी तेओ पोतामां जे वीतराग शुद्धोपयोगदशा प्रगटी तेना कर्ता
छे; अने अमारामां जे धर्मदशा प्रगटी तेना निमित्त होवाथी भगवान धर्मकर्ता छे.
आचार्यदेव पोते धर्मरूप थईने कहे छे के अहो! भगवाने अमारा उपर अनुग्रह कर्यो
छे, भगवान अमारा धर्मकर्ता छे. तेमने हुं नमस्कार करुं छुं.