Atmadharma magazine - Ank 332
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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• अमदावादना सभ्यो लखे छे के – आत्मधर्म अने बालविभाग नियमित वांचीए छीए;
उत्तम संस्कारप्रेरक वांचनथी घणो ज आनंद थाय छे. दरमहिने उत्कंठाथी तेनी प्रतीक्षा
करीए छीए. गुरुदेवनी भवहारिणी वाणीनो लाभ आत्मधर्म द्वारा मळे छे. सुंदर संपादन
कार्यना अथाग प्रयत्न बदल हार्दिक धन्यवाद.
(–रोहित अने वर्षाबेन जैन)
• मौजमाबाद– जयपुरथी श्री फूलचंदजी जैन लखे छे –जैन बालपोथीका दूसरा भाग देखकर
एवं अध्ययन कर हर आदमी ईस पुस्तकके प्रति लालायित होता है! ईप्त कस्बेमें प० घर
अपने जैन समाजके हैं; सो मेरी यह प्रबल ईच्छा है कि यह पुस्तक हर घरमें भेंट करूं.
अत: अप ईसकी प० प्रतियां डाकसे भिजवानेकी कृपा करें
• मैसुरथी पद्मनाभ शास्त्री (जेओ गुरुदेव मैसुर पधार्या त्यारे प्रवचननुं कन्नड भाषांतर
करता हता – तेओ) भांगीतूटी हिंदी भाषामां लखे छे के – स्वामीजी समय और
आत्माका बहुमूल्य जानते हैं जिनेन्द्र भगवानकी वाणी प्रसारित करनेके लिये आप बहुत
प्रयत्नशील हैं जैन बालपोथी महान उपयोगी और सुंदर ग्रंथ हौ हमारे यहां ग्रीष्म
शिबिरमें ८० बालक–बालिका फायदा उठा रहे है
जयपुर थी नव वर्षनी बाळा भांगीतूटी भाषामां लखे छे के ‘वीरवाणी’ के माध्यमसे मेरे
पिताजी द्वारा मुझे जैन बालपोथी (दूसरा भाग) मिला: जैनधर्मकी शिक्षा प्राप्त करनेका
बालपोथीमें बहुत ही सुगम एवं सरल ढंगसे समजाया गया है; चित्रो देखकर भी आनंद
होता है. मैंने बहुतसे पाठ याद कर लिये हैं. मैं प्रतिदिन मंदिरजीमें जाकार देवदर्शन करती
हूं; तथा रात्रिको भोजन नहीं करुगी. शशिबाला जैन
तद्न सहेली वात
नीचे जे एकेक अक्षरो लखेला छे तेमां बाकीना अक्षरो तमारे तमारी बुद्धिथी पूरा
करवाना छे. जराक विचार करशो तो बाळकोने पण आवडे एवुं तद्रन सहेलुं छे –
(१) ऋ........ (२) अ........ (१३) वि........ (१४) अ........
(३) सं........ (४) अ........ (१प)
ध........ (१६) शां........
(प) सु........ (६) प......... (१७) कु........ (१८) अ........
(७) सु........ (८) चं........ (१९) म........ (२०) मु........
(९) सु........ (१०) शी........ (२१) न........ (२२) ने........
(११) श्रे........ (१२) वा........ (२३) पा........ (२४) म........