Atmadharma magazine - Ank 333
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : र४९७ आत्मधर्म : ९ :
न हतो क्यांय, विखवाद, के न हतो कोई वादविवाद, न हती कोई शंका – कुशंका, –
सौने हतुं एक ज ध्येय के केम आत्मानुं हित थाय! ज्यां जुओ त्यां परस्पर प्रेम
अने अनुमोदना हता. भिन्नभिन्न देशना साधर्मीओने देखी देखीने सौ प्रसन्न
थता हता ने धर्म प्रेम माटे एकबीजाने धन्यवाद आपता हता. आ वातावरण जोतां
पूजानी नीचेनी कडी याद आवती हती –
तिस थान धर्म दूजो न कोय, जिनराज तणो ईक धर्म होय.
वळी अहींनुं वातावरण जोईने सौराष्ट्रना घणा जिज्ञासुओने एम पण थतुं
के अरे, सौराष्ट्रनी आ महान अध्यात्मविभूति वडे ज्यारेे आखुं भारत जागृत बनी
रह्युं छे – त्यारे सौराष्ट्र तो जाणे ऊंधी रह्युं छे! बे त्रण स्थानो सिवाय पाठशाळा
पण क््यांय नियमित चालती नथी, स्वाध्याय – वांचनमां पण ढीलाश देखाय छे;
सौराष्ट्रना बंधुओ – बहेनो! मुमुक्षु साधर्मीओ! सौ जागो... आपणा अमूल्य
अध्यात्म निधाननो लाभ लेवाना आ अवसरमां ऊंघो नहीं. बीजाओ करतां
सौराष्ट्रनी वधारे जवाबदारी छे. जयपुर–संमेलनमां जोयेल महान साधर्मीप्रेम,
ज्ञाननी उत्कंठा, जैनधर्मना परम महिमापूर्वक तेना प्रचारनी भावना – ए बधायनुं
अनुकरण करीने सौराष्ट्रमां जैनशासननो एवो महान जयजयकार गजावो – के
भारतनी धार्मिक राजधानी तरीके के वधु झळकी ऊठे.
जयपुरमां जेठ सुद दशम आवी... वीस दिवसनो ज्ञानयज्ञ आनंद साथे
समाप्त थयो. २० दिवसना आ ज्ञान –महोत्सवनी खुशालीमां जैनधर्मप्रभावक
महान रथयात्रा नीकळी हती.
आगली रात्रे तो बे थी पांच वाग्या सुधी सख्त वावाझोडा साथे धोधमार
वरसाद वरस्यो. छ वागे तो धामधूमपूर्वक रथयात्रानी तैयार करवानी हती. वरसाद
देखीने जराक चिंता पण थती हती के रथयात्रानुं शुं थशे? – पण आ तो जैन शासननो
प्रभाव! कुदरत जैनशासनने अनुकूळ हती... रात्रे धोधमार वरसादे जयपुरना गंदा
रस्ताओ धोईने साफ करी नांख्या, अने सवारमां जयपुरनी सख्त गरमीने बदले
शीतलमधुर वातावरण सर्जी दीधुं. आम ऋतु पोते आश्चर्यकारी रीते जिनेन्द्र भगवाननी
सेवामां अनुकूळ थई गई. न वरसाद.. न गरमी.. एवा शांत स्वच्छ मधुर वातावरण
वच्चे महान रथयात्रामां यात्रिओए आनंदथी भाग लीधो. जाणे के