Atmadharma magazine - Ank 333
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 13 of 44

background image
: अषाढ : र४९७ आत्मधर्म : ११ :
उपसंहारमां एटलुं कहेवानुं के – वीतरागी तत्त्वज्ञानना प्रचार माटे थयेला
आ महान संमेलनमां बहारनी पण जे मोटी धामधूम थई, – तेनो खरो महिमा
नथी, पण जे तत्त्वज्ञानना प्रचार माटे आ बधुं आयोजन करवामां आवे छे ते
तत्त्वज्ञाननो खरो महिमा छे.... अने ए तत्त्वज्ञाननो लाभ गुरुदेव पासे सोनगढमां
निरंतर प्राप्त थाय छे; माटे जे जिज्ञासुओ जयपुरनी धामधूम जोवामां रही गया
होय तेओ पण तत्त्वज्ञाननो लाभ लईने पोतानुं प्रयोजन सफळ करी शके छे; अने
जेओने जयपुरनी धामधूम नजरे जोई होय तेओए पण तत्त्वज्ञाननो महिमा
लावीने तेनी भावना करवा जेवुं छे. वीतरागी तत्त्वज्ञान आत्मामां परिणमीने
स्वानुभूति थाय ते ज परम आनंदकारी अपूर्व महोत्सव छे.
जय हो....... आत्महितकारी वीतरागी तत्त्वज्ञाननो.
जय हो.... ए तत्त्वज्ञाननो बोध देनारा गुरुकहाननो.
(ईति श्री जयपुर–महोत्सव वर्णन)
जेठ सुद ११नी सवारमां जयपुरमां सीमंधर भगवानना दर्शन करीने
भावभीनी विदायपूर्वक गुरुदेव त्रीस यात्रिको सहित विमानमां जयपुरथी अमदावाद
आव्या; अमदावादना भव्य जिनालयमां बपोरे समयसार गाथा १प उपर प्रवचन
तथा भक्ति करीने सांजे बगोदरा गामे आव्या. ने बीजे दिवसे जेठ सुद १२ ना
रोज भावनगर पधार्या. त्यां चार दिवस रह्या छे समयसार गाथा ७२ ना
प्रवचनमां हजारो जिज्ञासुओए लाभ लीधो. जुना दिगंबर मंदिरमां उपर
खड्गासन चंद्रप्रभुना श्याम प्रतिमाजीनी भावभीनी मुद्रा देखीने गुरुदेव प्रसन्न
थया.... जेठ वद बीजना रोज गुरुदेव पुन: सोनगढ पधार्या... सोनगढमां गुरुदेव
सुख – शांतिमां बिराजे छे; ने सवारे नियमसार शुद्धभावअधिकार उपर तथा
बपोरे नाटक – समयसारनां निर्जराअधिकार उपर शांत रसझरता प्रवचनो चाले
छे... मधुर अध्यात्म वातावरणमां मुमुक्षुओ लाभ लई रह्या छे... आप पण लाभ
लेवा वेला सोनगढ पधारजो. – जय जिनेन्द्र!
[जयपुर–रथयात्राना फोटा तारथी मंगावेल, पण वखतसर आवी शक््या नथी.]