वीस दिवस सुधी अध्यात्म–ज्ञानप्रचारनो महान उत्सव थयो,
ते दरमियान टोडरमल–स्मारकभवनमां पू. श्री कानजी
स्वामीनां प्रवचननो हजारो श्रोताजनोए लाभ लीधो;
समयसार गाथा ६ थी १प तथा प्रवचनसार गाथा १ थी १६
सुधीनां ते प्रवचनोमांथी दोहान करीने केटलोक भाग
गतांकमां आप्यो हतो; बीजो भाग अहीं आपी छीए.
छुं: हे पंचपरमेष्ठी भगवंतो! हे विदेहमां बिराजता सीमंधरादि भगवंतो! गणधर
भगवंतो! आप सौ वीतरागताना आ आनंदउत्सवमां पधारो... पधारो...पधारो...मारी
शुद्ध चैतन्यसत्तानो निर्णय करीने तेमां हुं आपने पधरावुं छुं, ने समस्त रागादि
परभावोने जुदा करुं छुं. आवा मंगलपूर्वक मोक्षने साधवानो आ मंगलस्थंभ रोपाय छे.
धन्य एमनी दशा! मोक्ष तेमने अत्यंत नजीक छे. चैतन्यना केवळज्ञानना कपाट
खोलवा माटे तेओ कटिबद्ध थया छे. – आवी मुनिदशा होय छे. आवा मुनिने तो
अमे ‘भगवान’ गणीए छीए. समस्त परिग्रह छोडीने, आत्मज्ञान उपरांत
शुद्धोपयोगरूप मुनिधर्मने अंगीकार कर्यो छे, कदाचित शुभउपयोग थाय छे पण
तेनाथी उदासीन छे, अशुभपरिणति तो तेमने थती ज नथी; देहनी क्रिया सहजपणे