Atmadharma magazine - Ank 333
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: १र : आत्मधर्म : अषाढ : र४९७
जयपुर शहेरमां वैशाख वद छठ्ठथी जेठ सुद दशम
वीस दिवस सुधी अध्यात्म–ज्ञानप्रचारनो महान उत्सव थयो,
ते दरमियान टोडरमल–स्मारकभवनमां पू. श्री कानजी
स्वामीनां प्रवचननो हजारो श्रोताजनोए लाभ लीधो;
समयसार गाथा ६ थी १प तथा प्रवचनसार गाथा १ थी १६
सुधीनां ते प्रवचनोमांथी दोहान करीने केटलोक भाग
गतांकमां आप्यो हतो; बीजो भाग अहीं आपी छीए.
हे पंचपरमेष्ठी भगवंतो!
वीतरागताना आ आनन्द–उत्सवमां पधारो... पधारो... पधारो...
श्री कुंदकुंदस्वामी शुद्धोपयोग वडे मोक्षलक्ष्मीने साधतां–साधतां तेना मंगलरूपे कहे
छे के–अहो, आ मोक्षलक्ष्मीना स्वयंरमां हुं पंचपरमेष्ठी भगवंतोने मारा आंगणे बोलावुं
छुं: हे पंचपरमेष्ठी भगवंतो! हे विदेहमां बिराजता सीमंधरादि भगवंतो! गणधर
भगवंतो! आप सौ वीतरागताना आ आनंदउत्सवमां पधारो... पधारो...पधारो...मारी
शुद्ध चैतन्यसत्तानो निर्णय करीने तेमां हुं आपने पधरावुं छुं, ने समस्त रागादि
परभावोने जुदा करुं छुं. आवा मंगलपूर्वक मोक्षने साधवानो आ मंगलस्थंभ रोपाय छे.
शुद्धपयोगरूप धर्म ते मोक्षमार्ग छे, तेने अलौकिक वर्णन आ प्रवचन सारमां
छे. जैनमुनिओ आवा शुद्धोपयोगरूपे परिणमेला छे. अहा, धन्य एमनो अवतार!
धन्य एमनी दशा! मोक्ष तेमने अत्यंत नजीक छे. चैतन्यना केवळज्ञानना कपाट
खोलवा माटे तेओ कटिबद्ध थया छे. – आवी मुनिदशा होय छे. आवा मुनिने तो
अमे ‘भगवान’ गणीए छीए. समस्त परिग्रह छोडीने, आत्मज्ञान उपरांत
शुद्धोपयोगरूप मुनिधर्मने अंगीकार कर्यो छे, कदाचित शुभउपयोग थाय छे पण
तेनाथी उदासीन छे, अशुभपरिणति तो तेमने थती ज नथी; देहनी क्रिया सहजपणे