: अषाढ : र४९७ आत्मधर्म : ४१ :
मुमुक्षुनी बुद्धि स्वद्रव्यने पकडवामां तीक्ष्ण छे. तीक्ष्णबुद्धि एटले ज्ञानपर्यायनी
उग्रता, तेना वडे स्वद्रव्य पकडाय छे, विकल्पवडे स्वद्रव्य पकडातुं नथी.
विकल्प बंधनुं कारण छे, स्वद्रव्य तरफ ढळेलो भाव ते मोक्षनुं कारण
छे. स्वद्रव्य तरफ ढळेलो भाव विकल्पथी पार छे.
पर्यायबुद्धि एटले शुं?
स्वद्रव्यने भूलीने पर्याय जेटलो ज आखो आत्मा मानवो ते पर्यायबुद्धि
छे. द्रव्यसहित पोतानी पर्यायने जाणवी ते कांई पर्यायबुद्धि नथी.
मनना विकल्पोथी अपेक्षा छोडीने सीधा ज्ञानवडे आत्मानुं लक्ष थाय
छे. ज्ञान सिवाय बीजी कोई रीतथी आत्मा लक्षमां आवतो नथी.
विकल्प तो ज्ञानथी जुदी जात छे.
शास्त्रज्ञानना लक्ष वडे आत्मलक्ष थतुं नथी.
आत्मलक्ष कोई बाह्यपदार्थनी के रागनी अपेक्षा राखतुं नथी.
ईन्द्रियोथी ने रागथी छूटुं पडेलुं, ने आत्मानी सन्मुख वळेलुं ज्ञान ज
आत्मलक्ष करे छे.
विकल्पनुं घोलन ते मार्ग नथी, विकल्प ते कांई कांठो नथी. ज्ञानभावनुं
धोलन ते कांठो छे, ते मार्ग छे, तेना वडे चैतन्यसमुद्रमां प्रवेश थाय छे.
आनंदने जाणनारुं ज्ञान आनंदरूप थाय छे.
परंतु रागने जाणनारुं ज्ञान रागरूप थतुं नथी, जुदुं ज रहे छे.
एक समयमां पोते अनंत आनंदथी भरेलो, एकेक समये अनंत आनंद
भोगवे तो पण खूटे नहि – एवा महान आनंदनो निधान आत्मा, ते
पोते आनंदने बदले दुःख भोगवे – ए ते केम शोभे? आनंदधाममां तो
आनंद ज होय ने! आवा आत्मानी सन्मुख थतां ज आनंदनो अद्भुत
झणझणाट थाय छे.