धन्य मार्ग!
धन्य गुरु!
धन्य प्रभुता!
य
आजे कोई एक अपूर्व लागणीथी पू. गुरुदेवनो उपकार प्रसिद्ध करतां मारुं
अंतर आनंद अनुभवे छे. राजकोटमां सं १९९९ना अषाड सुद बीजथी गुरुदेवना
चरणमां आव्याने आजे तो २८–२८ वर्ष थया...गुरुदेवना प्रतापे मने जे मार्ग मळ्यो
तेनाथी हुं मारा जीवनने–मारा आत्माने धन्य मानुं छुं.
अहो, आवा गुरुने आवो वीतरागी जिनमार्ग, तथा तेने आदरनारा मुमुक्षु–
जीवोनो समूह –ए बधु पामीने एक पोताना आत्मानी प्राप्ति करवी, शांतिना पिंडनो
अनुभव करवो ए ज आपणुं सौनुं काम छे.
तीर्थंकर भगवाने जे उपदेश दीधो ने जे मार्ग चींध्यो.....ते ज उपदेश अने ते ज
मार्ग आजे आपणने मळी रह्यो छे...आवो मार्ग अने आवो उपदेश जेमना प्रतापे
मळ्यो ते गुरुना ते संतना महिमानी शी वात? जेनी पासे आखुं जगत ओछुं छे एवो
आत्मा ज जेमना प्रतापे प्राप्त थयो तेमनी पासे धरवा माटे आत्माथी महान कोई
वस्तु ज जगतमां क्यां छे? अने तेमने कोई वस्तुनी अपेक्षा पण क्यां छे? तेओ तो
कहे छे के बस! हुं मारामां.....ने तुं तारामां. बन्ने पोतपोतामां पूरा प्रभु!
धन्य मार्ग! धन्य गुरु! धन्य प्रभुता! –हरि