Atmadharma magazine - Ank 334
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९७ : आत्मधर्म : ३९ :
“देखोजी, यह जिनशासन है! ”
शुद्धात्मसन्मुख थयेली भावश्रुतपर्याय ते अतीन्द्रिय छे, ते राग वगरनी छे, तेने
जैनशासन कह्युं छे ने तेने ज आत्मा कह्यो छे. ज्ञानस्वरूप आत्माने अनुसरीने जे
ज्ञानदशा थई तेने आत्मा कह्यो. आवा ज्ञाननी अनुभूति ते आत्मानी ज अनुभूति छे,
केमके ज्ञान अने आत्मा कांई जुदा नथी. आवा अभेद ज्ञायकस्वभाव तरफ जे ज्ञानपर्याय
झुकी ते ज्ञानमां सामान्यनो आविर्भाव छे; ते ज्ञाने अंतर्मुख थईने सामान्यनुं अवलंबन
कर्युं छे; तेमां बीजा कोईनी रागनी के विकल्पनी भेळसेळ नथी; तेमज आ सामान्य अने
आ तेनुं अवलंबन लेनारी पर्याय–एवा भेद पण ते अनुभूतिमां नथी. अनुभूतिना
निर्विकल्परसमां आखो आत्मा परम चैतन्यभावे उल्लसे छे. आवा एकला ज्ञानमात्रनो
अनुभव करनार जीवे समस्त जिनशासनने देखी लीधुं.
(–अमदावाद : स. गा. १५ ना प्रवचनमांथी)
* रामगढ (सीकर–राजस्थान)थी पंडित श्री ईन्द्रचंद्रजी शास्त्री बे हजार रू.ना
ड्राफ साथे लखे छे के–कोई तीर्थंकर भगवाननुं जीवनचरित्र छपावीने आत्मधर्म–
बालविभागना बाळकोने भेट आपवा माटे आ रकम मोकली छे. तेओ बाल–
साहित्य प्रत्ये खास प्रेम धरावे छे. अगाउ पण तेमणे भगवान ऋषभदेवनुं
जीवनचरित्र बाळकोने भेट आपवा रू. १२०० मोकल्या हता. धार्मिक
बालसाहित्यना प्रचारनी उत्तम भावना माटे तेमने धन्यवाद!
* अजमेरथी कवि मूला (विमल प्रकाश जैन) लखे छे के जैनबालपोथी दूसरा भाग
मिला; रचनाशैली और जैनधर्मके प्रचारके तरीके सचमुच ही प्रशंसनीय है.
* सोनगढमां शिक्षणवर्ग उल्लासभर्या वातावरणमां चाली रह्यो छे. आखो दिवस
अध्यात्मचर्चा अने धार्मिकप्रवृत्तिनुं वातावरण रहे छे. प्र्रवचनोमां पण शांत–
रसनी धारा वरसे छे. सवारे नियमसार अने बपोरे समयसारनाटक वंचाय छे.
शिक्षणवर्ग पूरो थया बाद श्रावण वद १३ ने बुधवारथी शरू करीने
खास प्रवचनना आठ दिवसो, अने त्यारबाद गुरुवार (भादरवा सुद पांचम)
थी पर्युषणवर्ष–दश लक्षणीधर्मना दिवसोनो प्रारंभ थशे.
* आत्मधर्मनुं नवुं वर्ष कारतक मासथी शरू थशे. पर्युषण दरमियान आपनुं नवुं
लवाजम (चार रूपिया) मोकली आपशोजी. वहेलुं लवाजम भरवाथी
व्यवस्थामां घणी सुगमता रहे छे.