: ३८ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९७ :
* अमारो आफ्रिकानो पत्र *
आफ्रिकामां आपणा सेंकडो मुमुक्षु भाईओ वसे छे, दर वर्षे हजारो धार्मिक
पुस्तको मंगावीने होंशथी वांचे छे, आत्मधर्म पण मंगावे छे, सोनगढना वातावरणथी
परिचित रहीने दरेक प्रसंगे पोताना तरफथी उत्साहभर्यो सन्देश मोकलवानुं पण चुकता
नथी; त्यांना एक आगेवान मुमुक्षु भाईश्री भगवानजी के. शाह (जेमणे सोनगढमां
परमागम–मंदिरनुं शिलान्यास कर्युं हतुं) तेओ गुरुदेव प्रत्ये घणी भक्तिपूर्वक पोताना
उल्लासभरेला पत्रमां मोम्बासाथी लखे छे के–
अहीं रेकोर्डिंगमशीनथी गुरुदेवना प्रवचनो सांभळतां आनंद थाय छे. विशेषमां
आत्मधर्मनी जुनी फाईलो शरूआतथी वांचीए छीए, तेमां मुख्य लखाणो साथे समाचारो तथा
सोनगढमां थई रहेल सत्धर्म–प्रभावना अने गुरुदेवना अमृतवचनो वांचतां २८ वर्षनुं बधुं नजरे
देखाय छे. खरेखर, आत्मधर्म अमारा माटे दीवादांडी समान मार्गदर्शक झळकतो दीवो छे; तेनो प्रकाश
दूरदूरना भव्यजीवोने पण आत्माना धर्मनो मार्ग बतावे छे. ज्ञानकळानो संग्रह अने खजानो
आत्मधर्मना अंकोमां भरपूर भर्यो छे; मुख्य मुख्य प्रभावनाना विषयो कोईपण रही गया न होय
एवी काळजीथी संग्रह करेल छे. आ फाईलो वांचतां अने पहेलांंना प्रसंगो जाणतां रोमांच खडा थई
जाय छे, जाणे आखा सोनगढनो आटला वर्षोनो ईतिहास नजर सामे देखाय छे. खरेखर
आत्मधर्मना एकेक अंकमां अमूल्य खजानो अने शास्त्रोनो नीचोड छे. आ बधो प्रताप अने उपकार
पू. गुरुदेवश्रीनो छे. आवा अमूल्य खजानानुं जे कोई वांचन–मनन करशे तेने अनेक वर्षोनो एकठो
थयेलो संग्रह थोडा वखतमां जाणवा–समजवा मळशे ने सत्धर्मनी भावना जागृत थशे. पू.
गुरुदेवना अंतरना भावोनो आपे परिश्रमपूर्वक आत्मधर्ममां जे संग्रह अने संकलना करी छे तेनो
लाभ हजारो वर्षो सुधी जिज्ञासुओने मळतो रहेशे. आ कार्यमां खूब उत्साह बदल धन्यवाद!
(–भगवानजी कचराभाई शाह)
याद आवे छे अकंपमुनिराज...याद आवे छे विष्णुमुनिराज
श्रावण सुद पूर्णिमा...वात्सल्यनुं महान पर्व...धर्मरक्षानुं महान पर्व...ए दिवस नजीक
आवे छे ने अंतरमां वात्सल्यनी, धर्मप्रेमनी, साधर्मीस्नेहनी अवनवी उर्मिओ जगाडे छे. धन्य ए
आराधनामां अडोल अकंप मुनिवरो, धन्य ए वत्स्लवंता मुनिराज...ने धन्य ए हस्तिनापुरीना
धर्मप्रमी श्रावको. ते सौने वात्सल्यादि अष्टांग सहित सम्यक्त्वनी आराधनापूर्वक नमस्कार हो.
(आवता अंके वात्सल्यअंगनी कथा रजु थवानी होवाथी अत्रे विशेष नथी लखता.)