Atmadharma magazine - Ank 334
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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फोन नं. : ३४ “आत्मधर्म” Regd. No. G. 182
‘अपूर्वतामां आवी जा’
हे जीव! नीचला पांच पगथियां तो तुं वटावी गयो; ने
पंचपरमेष्ठीनी सेवा सुधी पहोंची गयो; हवे खरा जरूरी उपला चार
अपूर्व पगथियां चडवानो उद्यम कर. कदाच एकसाथे चार पगथियां न
चडी शकाय तो एक पगथियुं तो जरूर चडीने ‘अपूर्वतामां आवी जा.’
प्रकाशक: (सौराष्ट्र) प्रत : २८००
मुद्रक : मगनलाल जैन, अजित मुद्रणालय : सोनगढ (सौराष्ट्र) श्रावण : (३३४)