मायाजाळमां फसायेलो छे; ते पोताना चैतन्यभावने भूल्यो छे ने चार गतिना भवमां
सूतो छे, जे–जे भवमां जे पर्यायने धारण करे छे ते पर्यायने ज अनुभववामां मशगुल छे;
हुं देव छुं, हुं मनुष्य छुं, हुं रागी छुं –एम अनुभवे छे, पण एनाथी जुदा पोताना शुद्ध
ज्ञायकपदने अनुभवतो नथी ते अंध छे. ते विनाशी भावोरूपे ज पोताने अनुभवे छे पण
अविनाशी निजपदने देखतो नथी. ते निजपदनो मार्ग भूलीने ऊंधा मार्गे चडी गयो छे.
सन्तो तेने हाकल करे छे के अरे जीव! थंभी जा! विभावना मार्गेथी पाछो वळ... ए तारा
सुखनो मार्ग नथी, ए तो मायाजाळमां फसावानो मार्ग छे... माटे ए मार्गेथी रूक जा अने
आ तरफ आव...आ तरफ आव. तारुं आनंदमय सुखधाम अहीं छे. आ तरफ आव. देव
तुं नहिं, मनुष्य तुं नहि, रागी तुं नहिं, तु तो शुद्ध चैतन्य छो. तारो अनुभव तो
चैतन्यमय छे. चैतन्यथी जुदुं कोई पद तारुं नथी–नथी; ते तो अपद छे, अपद छे.
वीतरागमार्गे विचर्या. जे चैतन्यपदना अनुभव पासे ईन्द्रासन पण अपद लागे, तेना
महिमानी शी वात! अरे, तारुं शुद्ध चैतन्यस्वरूप जेवुं छे तेवुं जो तो खरो! अमृतथी
भरेलुं आ चैतन्यसरोवर, तेने छोडीने झेरना समुद्रमां न जा. भाई, दुःखी थवाना रस्ते
न जा... न जा. ए परभावना मार्गेथी पाछो वळ... पाछो वळ ने आ चैतन्यना मार्गे
आव रे आव. बहारमां तारो मार्ग नथी, अंतरमां तारो मार्ग छे, अंतरमां
आव...आव. सन्तो प्रेमथी तने मोक्षना मार्गमां बोलावे छे.
राजकुमारो अंतरना मार्गमां वळ्या. बहारना भाव अनंतकाळ कर्यां, हवे ते छोडीने
अमारुं परिणमन अंदर अमारा निजपदमां वळे छे,–हवे ए परभावना पंथमां हुं नहि
जाऊं–नहि जाऊं–नहि जाऊं; अंतरना अमारा चैतन्यपदमां ज ढळुं छुं.–आम
स्वानुभूतिपूर्वक धर्मी जीव निजपदने साधे छे......ने बीजा जीवोने पण कहे छे के हे
जीवो! तमे पण आ मार्गे आवो रे आवो. अंतरमां जोयेलो जे मोक्षनो मार्ग, आनंदनो
मार्ग ते बतावीने सन्तो बोलावे छे के हे जीवो! तमे पण अमारी साथे आ मार्गे
आवो... आ मार्गे आवो. अविनाशीपदनो आ मार्ग छे... सिद्धपदनो आ मार्ग छे.