Atmadharma magazine - Ank 334
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९७ :
मोक्षार्थीए स्वाद लेवा योग्य, अनुभव करवायोग्य शुद्धचैतन्यपद एक ज छे,
एना सिवाय बीजुं अपद छे, शुद्धजीवनुं स्वरूप ते नथी. मोक्ष एटले के परम सुख
जोईतुं होय तेणे निरंतर आ शुद्धपदनो ज अनुभव करवो. शुं करवुं ने शेमां ठरवुं? –तो
कहे छे के पोताना शुद्ध चैतन्यपदमां द्रष्टि करवी ने तेमां ठरवुं. शरीर के घर ते तारुं पद
नथी, ते तारुं रहेठाण नथी; संयोगो ते तारुं रहेठाण नथी, राग ते तारुं रहेठाण नथी,
तारुं रहेठाण असंख्यप्रदेशी चैतन्यरसथी भरपूर छे, ते ज तारुं निजपद छे.–एनो
अनुभव लेवो ते ज मोक्षनुं एटले चिरसुखनुं कारण छे. चिरसुख एटले लांबुं सुख,
अनंतकाळनुं सुख, शाश्वत सुख, मोक्षसुख.
आत्मा पोते सत्य अविनाशी वस्तु छे, तेना अनुभवथी थयेलुं सुख शाश्वत
अविनाशी छे. आत्मानो आनंद तो पोतामां छे, परमां क्यांय आनंद नथी. जेमां
आनंद न होय तेने निजपद केम कहेवाय? निजपद तो तेने कहेवाय के जेमां आनंद
होय. जेनो स्वाद लेतां, जेमां रहेतां, जेमां ठरतां आत्माने सुखनो अनुभव थाय ते
निजपद छे. जेना वेदनमां आकुळता थाय ते निजपद नथी, ते तो पर पद छे, आत्माने
माटे अपद छे. तेने अपद जाणीने तेनाथी पाछा वळो, ने आ शुद्ध आनंदमय चैतन्यपद
तरफ आवो. सन्तो साद पाडीने बोलावे छे के आ तरफ आवो–आ तरफ आवो.
जेमां कोई विकल्प नथी एवुं आ निर्विकल्प एक ज चैतन्यपद आस्वादवा जेवुं
छे. सम्यग्दर्शनमां चैतन्यनो स्वाद छे, सम्यग्ज्ञानमां चैतन्यनो स्वाद छे, सम्यक्
चारित्रमांय चैतन्यनो स्वाद छे. रागनो स्वाद रत्नत्रयथी बहार छे; निजपदमां रागनो
स्वाद नथी. राग ए तो दुःख छे, विपदा छे, चैतन्यपदमां विपदा नथी. जेमां आपदा ते
अपद, जेमां आपदानो अभाव ने सुखनो सद्भाव ते स्वपद; आनंदस्वरूप आत्मानी
संपदाथी जे विपरीत छे ते विपदा छे. राग ते चैतन्यनी संपदा नथी पण विपदा छे;
आत्मानुं ते अपद छे. जेम राजानुं स्थान मेला उकरडामां न शोभे, राजा तो सोनाना
सिंहासने शोभे; तेम आ जीव–राजानुं स्थान राग–द्धेष क्रोधादि मलिनभावोमां नथी
शोभतुं, तेनुं स्थान तो पोताना शुद्ध चैतन्यसिंहासने शोभे छे. रागमां चैतन्यराजा
नथी शोभता; ए तो अपद छे, अस्थिर छे, मलिन छे, विरुद्ध छे; चैतन्यपद शाश्वत छे,
शुद्ध छे, पवित्र छे, पोताना स्वभावरूप छे. आवा शुद्ध स्वपदने हे जीवो! तमे
जाणो...तेने स्वानुभव–प्रत्यक्ष करो. आवी निजपदनी साधना ते मोक्षनो उपाय छे.