Atmadharma magazine - Ank 335
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: भाद्रपद : २४९७ आत्मधर्म : १ :
वार्षिक वीर सं. २४९७
लवाजम भाद्रपद
चार रूपिया
Sept¸ 1971
* वर्ष २८ : अंक ११ *
धर्मात्मानी गंभीर परिणतिनुं स्वरूप समजावतुं
आत्म–अनुभूतिप्रेरक आनंदमय प्रवचन
श्रावण वद बीजनुं आ मंगलप्रवचन छे. धर्मात्मानी
गंभीर चेतनापरिणति–के जे रागादि समस्त परभावोथी
अत्यंत जुदी, चैतन्यमां एकत्वभावे निरंतर वर्ते छे–ते
परिणतिने ओळखतां चैतन्यनुं अने रागनुं पोतामां
भेदज्ञान थईने आत्मसाक्षात्कार थाय छे,–ते ज धर्मात्मानी
परमार्थ भक्ति छे; आवी भक्तिवडे अवश्य मुक्ति थाय छे.
ते चेतनापरिणतिनी साची ओळखाण अने आत्मअनुभूति
केम थाय तेनुं अद्भुतवर्णन गुरुदेवे आ प्रवचनमां कर्युं छे;
अने गुरुदेव कहे छे के आ तो मंगल बीजना निमित्ते
अध्यात्मना बदामपाक पीरसाय छे. आत्मजिज्ञासु जीवो आ
प्रवचनना भावोनुं मनन करीने आत्मलाभ पामो.
(सं.)
आ नियमसारमां निश्चयप्रत्याख्याननी वात चाले छे. प्रत्याख्यान करनार
जीवने प्रथम तो परभावथी भिन्न ज्ञानस्वरूप आत्मानो निर्णय अने अनुभव
होय छे.