: २ : आत्मधर्म : भाद्रपद : २४९७
२ जे परभावने छोडवाना छे तेने पोताथी भिन्न जाण्या वगर ते परभावने छोडशे
कई रीते?
३ अंतर्मुख थईने पोताना ज्ञानस्वभावने अनुभवतां ज्ञानमांथी परभावनो त्याग
सहेजे थई जाय छे, केमके ज्ञान परभावना त्यागस्वरूप ज छे.
४ परभावोथी भिन्न, हुं पोते आनंदस्वरूप छुं; आवा पोताना आनंदस्वरूपमां रहुं
ते ज सुख छे, ने ते ज परभावनो त्याग छे.
५ पहेलां आत्माना स्वभावमां ऊतरीने आवी प्रतीत करतां ईन्द्रियातीत आनंदनो
अनुभव थाय छे, ने सम्यग्दर्शन थाय छे. सम्यग्दर्शन थतां श्रद्धामां समस्त
परभावोनुं अत्यंत प्रत्याख्यान थई जाय छे.
६ सम्यग्द्रष्टि पोताने केवळज्ञान–दर्शन–आनंदस्वरूप अनुभवे छे. तेमां परभावनो
एक अंश पण नथी. आवा आत्माना श्रद्धा–ज्ञानना जोरे पछी निजस्वरूपमां
एकाग्र थतां परभावोनुं प्रत्याख्यान थई जाय छे.
७ स्वरूपमां ठरेलुं ज्ञान पोते परभावना त्यागस्वरूप होवाथी प्रत्याख्यान छे.
ज्ञानभावनी जे अस्ति छे तेमां रागादि विरूद्ध भावोनी नास्ति छे.
८ पहेलांं ज्ञाननुं अने रागादिनुं अत्यंत स्पष्ट भेदज्ञान करवुं जोईए. साचुं भेदज्ञान
करतां सम्यग्दर्शन थाय छे.
९ अहो, आत्मानुं आवुं स्वरूप पोताना अनुभवमां आव्युं त्यां बीजाने पूछवापणुं
रहेतुं नथी. समयसार २०६ गाथामां आचार्यदेव कहे छे के हे जीव! बीजाने न
पूछ...ज्ञानस्वरूप आत्मा अनुभवमां आवतां तने पोताने बधा समाधान थई
जशे. संदेह नहीं रहे, पूछवुं नहीं पडे.
१० अहा, ज्ञानस्वरूप आत्मानो अनुभव करावनारुं आ समयसारशास्त्र जगतनुं
अद्धितीय चक्षु छे; आत्माने प्रकाशनारूं अजोड परमागम छे. कुंदकुंदस्वामी जेवा
महान आचार्यदेवे भगवाननी वाणी सांभळीने, पोताना आत्माना प्रचूर
स्वसंवेदनरूप आत्मवैभव वडे आ परमागमनी रचना करीने, जगतना
मुमुक्षुजीवोने आत्मानो अद्भुत वैभव देखाड्यो छे.