: भाद्रपद : २४९७ आत्मधर्म : ३१ :
आचार्ये कह्युं–हा; विष्णुकुमार मुनिराज तेमनो उपसर्ग दूर करी शके तेम छे,
केमके तेमने एवी विक्रियालब्धि प्रगटी छे के जेवडुं रूप करवुं होय तेवडुं करी शके पण
तेओ तो पोतानी आत्मसाधनामां एवा लीन छे के–तेमने पोतानी लब्धिनी पण खबर
नथी, ने मुनिओना उपसर्गनीये खबर नथी.
आ सांभळीने आचार्यनी आज्ञा लईने ते क्षुल्लकजी तरत विष्णुमुनि पासे गया
ने तेने बधी वात करीने प्रार्थना करी के हे नाथ! आप विक्रियालब्धि वडे आ उपसर्ग ने
शीघ्र दूर करो.
ए वात सांभळतांवेंत विष्णुमुनिना अंतरमां ७०० मुनिओ प्रत्ये परम
वत्सल्य ऊभरायुं. विक्रियालब्धिनी खातरी करवा तेमणे हाथ लंबाव्यो तो ठेठ
मानुषोत्तर पर्वत सुधी आखा मनुष्यलोकमां ते लंबायो. तरत तेओ हस्तिनापुर आवी
पहोंच्या. अने पोतानो भाई–के जे हस्तिनापुरनो राजा हतो–तेने कह्युं–अरे बंधु! तारा
राज्यमां आ शो अनर्थ?
पद्मराजे कह्युं : प्रभो! हुं लाचार छुं, अत्यारे राजसत्ता मारा हाथमां नथी.
एनी पासेथी बधी वात जाणीने विष्णुमुनिए ७०० मुनिनु रक्षा खातर पोते
थोडीवार मुनिपणुं छोडीने एक ठींगणा ब्राह्मण पंडितनुं रूप लीधुं. अने बलिराजा पासे
आवीने अत्यंत मधुर स्वरे उत्तम श्लोक बोलवा लाग्या.
बलिराजा तो एमनुं दिव्यरूप देखीने अने मधुर वाणी सांभळीने मुग्ध थई
गयो; अहो, तमे आवीने मारा यज्ञनी शोभा वधारी छे! एम कहीने तेणे ते विद्वाननुं
सन्मान कर्युं अने जे जोईए ते मांगवा कह्युं.
अहा, अयाचक मुनि, जगतना नाथ...ते अत्यारे पोताना ७०० साधर्मीओनी
रक्षा खातर याचक बन्या! आवुं छे धर्मवात्सल्य! मूर्ख राजाने क्यां खबर हती के जेने
हुं याचना करवानुं कहुं छुं ते ज हमणां मने धर्मना दातार थशे, अने हिंसाना घोर
पापमांथी मारो उद्धार करशे.
ते ब्राह्मणवेषधारी विष्णुकुमारे राजानुं वचन लईने त्रण पगलां जमीन मांगी.
राजाए खुशीथी ते जमीन मापी लेवा कह्युं. –बस, थई चूक्युं!
राजा ऊंचुं जुए छे त्यां तो विष्णुए वामनने बदले विराट रूप धारण कर्युं.