आ शुं थई रह्युं छे!
जग्या आप, नहींतर तारा माथा पर पग मुकीने तने पाताळमां उतारी दउं छुं?
संकेली लेवा विनति करी. बलिराजा वगेरे चारे मंत्रीओ मुनिराजना पगे पडीने पोतानी
भूलनी माफी मांगवा लाग्या : प्रभो, क्षमा करो! में आपने ओळख्या नहीं.
परम उपदेश आप्यो. ते सांभळीने तेओनुं हृदय–परिवर्तन थयुं, ने घोर पापनी क्षमा
मांगीने तेमणे आत्माना हितनो मार्ग अंगीकार कर्यो. अहा, विष्णुकुमारनी
विक्रियालब्धि बलि वगेरेने धर्मप्राप्तिनुं कारण बनी गई! ते जीवोए पोताना परिणाम
क्षणमां पलटी नांख्या. अरे, आवा शांत–वीतराग मुनिओ उपर अमे आवो उपसर्ग
कर्यो,–धिक्कार छे अमने! आम पश्चात्तापपूर्वक तेमणे जैनधर्मनो स्वीकार कर्यो. आ रीते
विष्णुमुनिभगवाने बलिराजा वगेरेनो उद्धार कर्यो...ने ७०० मुनिओनी रक्षा करी.
मुनिवरोनी वैयावच्च करवा लाग्या; विष्णुकुमारे पोते त्यां जईने मुनिओनी वैयावच्च
करी अने मुनिवरोए पण विष्णुकुमारना वात्सल्यनी प्रशंसा करी. अहा! वात्सल्यनुं ए
द्रश्य. अद्भुत हतुं! बलि वगेरे मंत्रीओए पण मुनिओ पासे जईने क्षमा मांगी ने
भक्तिथी सेवा करी.
भोजन कर्युं. जुओ, श्रावकोनो पण केवो धर्मप्रेम! धन्य ते श्रावको....ने धन्य ते साधुओ.