Atmadharma magazine - Ank 335
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : भाद्रपद : २४९७
विष्णुनुं ए विराटस्वरूप देखीने राजा तो चकित थई गयो. तेने समजायुं नहीं के अरे
आ शुं थई रह्युं छे!
विराटस्वरूप वष्णुए एक पग मनुष्यलोकना आ छेडे, अने बीजो पग बीजा
छेडे मुकीने बलिराजाने कह्युं–बोल हवे त्रीजुं पगलुं क्यां मूकुं? त्रीजुं पगलुं मुकवानी
जग्या आप, नहींतर तारा माथा पर पग मुकीने तने पाताळमां उतारी दउं छुं?
मुनिराजनी आवी विक्रया थतां चारेकोर खळभळाट थई गयो; आखुं ब्रह्मांड जाणे
धूजी ऊठ्युं! देवो अने मनुष्योए आवीने विष्णुमुनिराजनी स्तुति करी अने विक्रिया
संकेली लेवा विनति करी. बलिराजा वगेरे चारे मंत्रीओ मुनिराजना पगे पडीने पोतानी
भूलनी माफी मांगवा लाग्या : प्रभो, क्षमा करो! में आपने ओळख्या नहीं.
विष्णुमुनिराजे क्षमापूर्वक तेमने अहिंसाधर्मनुं स्वरूप समजाव्युं, तथा जैन–
मुनिओनी वीतरागी क्षमा बतावीने तेमनो महिमा समजाव्यो, अने आत्माना हितनो
परम उपदेश आप्यो. ते सांभळीने तेओनुं हृदय–परिवर्तन थयुं, ने घोर पापनी क्षमा
मांगीने तेमणे आत्माना हितनो मार्ग अंगीकार कर्यो. अहा, विष्णुकुमारनी
विक्रियालब्धि बलि वगेरेने धर्मप्राप्तिनुं कारण बनी गई! ते जीवोए पोताना परिणाम
क्षणमां पलटी नांख्या. अरे, आवा शांत–वीतराग मुनिओ उपर अमे आवो उपसर्ग
कर्यो,–धिक्कार छे अमने! आम पश्चात्तापपूर्वक तेमणे जैनधर्मनो स्वीकार कर्यो. आ रीते
विष्णुमुनिभगवाने बलिराजा वगेरेनो उद्धार कर्यो...ने ७०० मुनिओनी रक्षा करी.
चारेकोर जैनधर्मना जयजयकार गाजी ऊठया. तरत ज हिंसक यज्ञ बंध थई
गयो; मुनिवरो उपरनो उपसर्ग दूर थयो. हजारो श्रावको परम भक्तिथी ७००
मुनिवरोनी वैयावच्च करवा लाग्या; विष्णुकुमारे पोते त्यां जईने मुनिओनी वैयावच्च
करी अने मुनिवरोए पण विष्णुकुमारना वात्सल्यनी प्रशंसा करी. अहा! वात्सल्यनुं ए
द्रश्य. अद्भुत हतुं! बलि वगेरे मंत्रीओए पण मुनिओ पासे जईने क्षमा मांगी ने
भक्तिथी सेवा करी.
उपसर्ग दूर थयो तेथी मुनिओ आहार माटे हस्तिनापुरी नगरीमां पधार्या. हजारो
श्रावकोए अतिशय भक्तिपूर्वक मुनिओने आहारदान कर्युं, त्यार पछी ज ते श्रावकोए
भोजन कर्युं. जुओ, श्रावकोनो पण केवो धर्मप्रेम! धन्य ते श्रावको....ने धन्य ते साधुओ.