Atmadharma magazine - Ank 335
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: भाद्रपद : २४९७ आत्मधर्म : ३३ :
जे दिवसे आ बनाव बन्यो ते दिवसे श्रावण सुद पूनम हती. विष्णुकुमार
मुनिराजना महान वात्सल्यने लीधे ७०० मुनिओनी तथा धर्मनी रक्षा थई तेथी ते
दिवस ‘रक्षापर्व’ तरीके प्रसिद्ध थयो, ते आजे पण उजवाय छे.
मुनिरक्षानुं पोतानुं काम पूरूं थयुं, एटले वेष छोडीने विष्णुकुमारे फरीथी
मुनिदशा धारण करी, अने ध्यानवडे पोताना आत्माने शुद्ध रत्नत्रयधर्म साथे अभेद
करीने एवुं वात्सल्य कर्युं के अल्पकाळमां केवळज्ञान प्रगट करीने मोक्ष पाम्या.
[विष्णुमुनिराजनी आ कथा आपणने एम शीखवे छे के धर्मात्मा
साधर्मीजनोने पोताना ज समजीने तेमना प्रत्ये अत्यंत प्रीतिरूप वात्सल्य राखवुं;
तेमना प्रत्ये आदर–सन्मानपूर्वक दरेक प्रकारे मदद करवी; तेमना उपर कंई संकट
आवी पडे तो पोतानी शक्तिथी तेनुं निवारण करवुं. आ रीते धर्मात्मा प्रत्ये
अत्यंत प्रीतिसहित वर्तवुं. जेने धर्मनी प्रीति होय तेने धर्मात्मा उपर पण प्रीति
होय ज; धर्मात्मा उपरनुं संकट ते देखी शके नहीं.]
* * * * * *
भद्र
तारुं परमेश्वरपणुं तारामां छे एम संतो बतावे
छे– तेनो विश्वासथी स्वीकार कर. एकवार
श्रीमद्राजचंद्रजीए कोई भरवाडलोकमां अनुकरणनी
जिज्ञासाबुद्धि देखीने तेओने कह्युं के ‘भाईओ! आंखो
मींची जाओ, ने अंदर हुं परमेश्वर छुं–एम विचार करो. ’
ते भरवाड भद्र हता, तेमणे ए वातमां शंका के प्रतिकार न
कर्यो, पण विश्वासथी एम विचार्युं के आ कोई महात्मा छे
ने अमने अमारा हितनी कंईक अपूर्व वात कहे छे;
जगतना जीवो करतां आमनी चेष्टा कंईक जुदी लागे छे.
तेम हे भद्र! अहीं कुंदकुंदस्वामी जेवा परमहितकारी संतो
अने तारुं सिद्धपणुं बतावे छे, तो तुं उल्लासथी तेनी हा
पाड, ने हुं सिद्ध छुं–एम तारा आत्माने चिंतनमां ले.