: ३४ : आत्मधर्म : भाद्रपद : २४९७
नवरस
[अनुसंधान पृष्ठ १६ थी चालु]
लोकोने जेमां रस आवे ते रसमां एवा एकाग्र थई जाय छे के बीजुं भान
भूली जाय छे. लौकिकरसमां तो विषय–कषायनुं पोषण छे. अहीं कहे छे के बापु! तारा
चैतन्यनो रस कोई एवो अचिंत्य छे के ते रसना स्वादमां एकाकार थतां ज जगत
आखानो रस ऊडी जाय छे. चैतन्यना शांतरसमां नवे अध्यात्मरस समाई जाय छे.
माटे उपयोगने तारा चैतन्यमां एकाग्र करीने तेना रसनो स्वाद ले. शांतरसनो पिंड
आत्मा, तेमां बधा रस समाई जाय छे. एनो अनुभव करतां धर्मी कहे छे के अहो,
आत्मा उपशमरसमां तरबोळ छे. प्रभुनी स्तुतिमां आवे छे के ‘उपशमरस वरसे रे
प्रभु तारा नयनमां.’–अहीं कहे छे के नयनने अंतरमां वाळीने चैतन्यमां एकाग्र थतां
अतीन्द्रिय शांतिथी भरपूर उपशमरसनी अपूर्वधारा उल्लसे छे. शांतरसना पिंडरूपे
आत्मा पोते पोताने अनुभवे छे पछी आत्मा सिवाय जगतना बीजा कोई पदार्थमां
तेने रस रहेतो नथी, आत्मा सिवाय बीजुं तेने नीरस लागे छे; आत्माना अनुभवनो
रस ए ज एक साचो रस छे, बधा रस तेमां आवी जाय छे. हे जीव! तुं अनंत गुणना
स्वादथी भरेला चैतन्यरसनो रसियो थईने स्वसंवेदनथी तेनुं आस्वादन कर.
(समयसारनाटक पानुं ३०४)
वैराग्य समाचार–
* ढसाना भाईश्री नरभेराम मोरारजी संघराजका भादरवा सुद चोथना रोज ढसा
मुकामे हृदयरोगना हुमलाथी स्वर्गवास पाम्या छे; तेमने गुरुदेव प्रत्ये भक्तिभाव हतो.
* कोठारी देवसीभाई रामजीना धर्मपत्नी चंचळबेन श्रावण वद त्रीजे सोनगढ
मुकामे स्वर्गवास पाम्या छे. तेओ अनेक वर्षोथी सोनगढ रहेता हता.
* सुदासणा निवासी भाईश्री वाडीलाल भीखालाल महेता (उ. वर्ष ६०) ता.
५–८–७१ ना रोज सुदासणा मुकामे स्वर्गवास पाम्या छे. मुंबईना जिनमंदिरे
शास्त्रवांचनमां तेओ हंमेशा आवता हता.
* राजकोटना अमृतलाल रणछोडदासना धर्मपत्नी अजवाळीबेन (उ. वर्ष
६९) श्रावण वद १३ ना रोज मद्रासमुकामे स्वर्गवास पाम्या.
–स्वर्गस्थ आत्माओ वीतरागी देव–गुरु–धर्मना शरणे आत्मशांति पामो.