: भाद्रपद : २४९७ आत्मधर्म : ३७ :
* समयसारना परम अचिंत्य गंभीर महिमानुं शुं कहीए! अहो! समयसारना
अभ्यासथी हृदयना फाटक खूली जाय छे; आखो आत्मभगवान प्रगट थाय छे.
समयसारनो अभ्यासी आखी चैतन्यवस्तुने कबजे करी ले छे. राग वगरनो अनंत
गुणनो समाज आत्माना कबाटमां भर्यो छे, ते कबाटनां द्वार आ समयसार वडे
खूली गया छे. अहो! समयसार तो वीतरागी संतोए अमारा हितने माटे ज
बनाव्युं छे. जय समयसार
* सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान मोक्षनुं कारण छे–ए सत्य छे, पण एकला सम्यग्दर्शन ने
सम्यग्ज्ञान वडे ज मोक्ष थई जतो नथी, सम्यग्दर्शन–ज्ञानपूर्वक ज्यारे सर्वसंग–
परित्यागी थई, मुनिपणुं लई, मोहरहित थई, शुद्धोपयोगी वीतरागी चारित्रदशा
प्रगट करे त्यारे ज मुक्ति थाय छे. माटे धर्मीजीवो सम्यग्दर्शनपूर्वक चारित्रदशानी
भावना भावे छे. चारित्रदशा पहेलांं सम्यग्दर्शन तो होवुं ज जोईए. जेने सम्यग्दर्शन
पण न होय तेणे प्रथम आत्मानी ओळखाण करीने सम्यग्दर्शन करवुं जोईए.
गुरुदेवना उपकारमां अनुमोदना–
ध्रांगध्राना एडवोकेट भाई श्री केशवलाल डी. शाह लखे छे के श्रावणमासना
आत्मधर्ममां परम महिमावंत गुरुदेव प्रत्ये भावभीनी लागणीवश २८ वर्षना
एकधारा सत्समागमने कारणे जे श्रद्धांजलि समर्पण करी छे ते यथोचित, भव्य अने
कृतकृत्यता सूचक छे; तेमां नम्र अने. गंभीर ऊंडा भाव रहेला छे; अने तेना द्वारा
आत्मधर्म मासीकना तमाम वांचकसमुदायना अंदरना आवा प्रकारना भावोने पण
प्रत्यक्ष वाचा आपेल छे. आपनाथी संकलन पामतुं आत्मधर्म खरेखर ‘आत्मा’ ज
बतावे छे. ज्ञानकळानो संग्रह अने अखूट खजानो प्रत्येक अंकमां सभर होय छे. पू.
गुरुदेवनो आपना उपर अने अनेक भव्यजीवो उपर प्रत्यक्ष उपकार छे, अने परोक्षपणे
पण आत्मधर्ममां प्रसिद्ध थता प्रत्येक लेखमां परोवायेल सुंदर भावो द्वारा भारतना
हजारो मुमुक्षु जीवो पर तेमनो उपकार छे.
आत्मधर्मना चालुवर्षमां सम्यग्दर्शनना आठअंग, ते दरेक अंगनी द्रष्टांत–कथां,
अने तेमांथी प्राप्त थतो उत्तम बोधपाठ सरस रीते रजु थाय छे, ते धर्म समजनार दरेक
जीवने नीडर बनावीने राडर (दीवाडांडी) समान मार्गदर्शक छे.
–वकील के. डी. शाह.