Atmadharma magazine - Ank 336
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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साधर्मी बंधुओ, आ अंकनी साथे आपणा आत्मधर्मनुं २८मुं वर्ष पूरुं थाय
छे. पू. श्री कहानगुरुनी मंगलछायामां २८ वर्षथी आत्मधर्मद्वारा आपणने सौने
आत्महितनुं जे मार्गदर्शन अने प्रेरणा मळे छे ते अलौकिक छे. वीतरागमार्गनी
शरूआत आपणा आत्मामांथी ज थाय छे, एवो आत्मसन्मुखी वीतरागमार्ग प्राप्त
करावीने गुरुदेवे जे अपूर्व उपकार कर्यो छे. तेनुं स्मरण करीने गुरुचरणोमां हृदय
नमी पडे छे.
श्री देव–गुरुना शरणमां, आत्मधर्मद्वारा आपणे सौ एक परिवार जेवा
बनी गया छीए. गमे तेटली दूरदूरनी बे व्यक्ति मळे. पण जो बन्ने आत्मधर्मना
वांचनार होय तो, जाणे अत्यंत नीकटना परिचित एक परिवारना ज होय–एवो
प्रेम परस्पर थाय छे. आत्मधर्मना समस्त पाठकोने पोताना साधर्मी भाई–बेन
समजीने संपादशे के तेमना उपर हंमेशा निर्दोष वात्सल्यप्रेम वरसाव्यो छे, ने
सामेथी समस्त पाठकोए पण संपादक प्रत्ये एवी ज लागणी बतावी छे.
आत्मधर्मद्वारा बंधायेलो आवो धार्मिकसंबंध ते आपणी किंमती मूडी छे.
बंधुओ, आ अवसर आत्माने साधवानो छे. आत्माने साधवानी सर्व
सामग्री गुरुप्रतापे आपणने मळी छे. तो हवे आवा उत्तम–कार्यमां वार शा माटे
लगाडवी? अत्यंत जागृत थईने आत्मानी आराधनामां तत्त्पर थवुं योग्य छे.
आत्मानी आराधनावडे सम्यक् चैतन्यदीवडा प्रगटावीने मोक्षनी मंगल–दीपावली
ऊजवीए... ने आनंदमय रत्नत्रयनां तेजथी आत्मामां झगझगाट प्रगटावीए...
–ब्र. हरिलाल जैन
साथे साथे अमारी एक नानकडी सूचना आप तरत ध्यानमां लेशो–नवावर्षनुं
आपनुं लवाजम (चार रूपिया) एकाद अठवाडियामां ज [आत्मधर्म कार्यालय,
सोनगढ सौराष्ट्र–ए सरनामे] मोकली आपशोजी–जेथी व्यवस्थामां अमने सरळता
रहे. लवाजम साथे आपनुं पूरुं सरनामुं स्पष्ट लखशोजी.