Atmadharma magazine - Ank 336
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : आसो : २४९७
दिवाकर राजाने धर्मनो प्रेम हतो ज, तेमां वळी मुनिराजना उपदेशथी तेने
प्रेरणा मळी; तरत ज मुनिराजने नमस्कार करीने उर्विलाराणी साथे बधा विद्याधरो
मथुरा आवी पहोंच्या अने धामधूमपूर्वक जिनेन्द्रदेवनी रथयात्रा काढी. हजारो
विद्याधरोना प्रभावने देखीने राजा अने बुद्धदासी पण आश्चर्य पामी गया, अने
जैनधर्मथी प्रभावित थईने आनंदपूर्वक तेमणे जैनधर्म अंगीकार करीने पोतानुं कल्याण
कर्युं; तथा सत्यधर्म पमाडवा माटे उर्विलाराणीनो उपकार मान्यो. उर्विला राणीए तेमने
जैनधर्मना वीतरागी देवगुरुनो अपार महिमा समजाव्यो. मथुरानगरीना हजारो जीवो
पण आवी महान प्रभावना देखीने आनंदित थया ने बहुमानपूर्वक जैनधर्मनी
उपासना करवा लाग्या. आ रीते वज्रकुमारमुनि द्वारा अने उर्विलाराणी द्वारा जैन–
धर्मनी महान प्रभावना थई.
[वज्रकुमारमुनिराजनी कथा आपणने जैनधर्मनी सेवा करवानुं अने अत्यंत
महिमापूर्वक तेनी प्रभावना करवानुं शीखडावे छे. तन–मन–धनथी, ज्ञानथी, श्रद्धाथी
सर्वप्रकारे धर्म उपरनुं संकट दूर करी, धर्मनो महिमा प्रसिद्ध करवो अने धर्मनी वृद्धि करवी.
तेमां पण आ जमानामां खास करीने ज्ञानसाहित्य द्वारा धर्मप्रभावना करवा योग्य छे.]
* उपसंहार *
समन्तभद्रस्वामीए रत्नकरं श्रावकाचारमां सम्यक्त्वना आठ अंगनुं वर्णन
करीने, ते अंगमां प्रसिद्ध महात्माओनां नाम आप्यां छे; ते अनुसार आठ अंगनी आठ
कथाओ आपे आत्मधर्ममां वांची.–
अंजन निरंजन हुए जिनने नहीं शंका चित्त धरी (१)
बाई अनंतमती सतीने विषय–आशा परिहरी (२)
सज्जन उदायन नृपतिवरने ग्लानि जीती भावसे (३)
सत् असतका किया निर्णय रेवतीने चावसे (४)
जिनभक्तजीने चोरका वह महा दूषण ढक दिया (५)
जय वारिषेणमुनिश मुनिके चपल चित्तको स्थिर किया (६)
सु विष्णुकुमार कृपालुने मुनिसंधकी रक्षा करी (७)
जय वज्रमुनि जयवंत तुमसे धर्ममहिमा विस्तरी (८)