Atmadharma magazine - Ank 336
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९७ आत्मधर्म : २७ :
सम्यक्त्वनो महिमा जगाडनारी अने आठ अंगना पालनमां उत्साह प्रेरनारी
आ आठ कथाओ वांचीने घणा जिज्ञासुओए प्रसन्नता बतावी छे. अहीं उपसंहाररूपे
आठ अंगनी कथाओमांथी जे उत्तम प्रेरणा मळे छे तेनुं पुनरावर्तन करी लईए–
(१) निःशंक अंगमां प्रसिद्ध अंजनकुमारनी कथा जैनधर्मनी निःशंक श्रद्धा करीने
तेनी आराधना करवानुं आपणने शीखवे छे.
(२) निःकांक्ष अंगमां प्रसिद्ध अनंगमतीनी कथा, संसारसुखनी वांछा छोडीने
आत्मिक सुखने ज साधवामां तत्पर थवानुं आपणने शीखवे छे.
(३) निर्विचिकित्सा–अंगमां प्रसिद्ध उदायन राजानी कथा आपणने एवो बोध
आपे छे के–धर्मात्माना शरीरादिने अशुचि देखीने पण तेना धर्मप्रत्ये ग्लानि न करो,
तेना सम्यक्त्वादि पवित्रगुणोनुं बहुमान करो.
(४) अमूढद्रष्टि अंगमां प्रसिद्ध रेवतीराणीनी कथा आपणने एम कहे छे के
वीतरागपरमात्मा अरिहंतदेवनुं साचुं स्वरूप ओळखो अने तेमना सिवायना बीजा
कोई पण देव–भले साक्षात् ब्रह्मा–विष्णु–शंकर जेवा देखाता होय तोपण तेने नमो नहीं.
जिनवचनथी विरुद्ध कोई वातने मानो नहीं. भले आखुं जगत बीजुं माने ने तमे
एकला पडी जाओ–तोपण जिनमार्गनी श्रद्धाने छोडो नहीं.
(५) उपगूहन अंगमां प्रसिद्ध जिनभक्त शेठनी कथा आपणने एम शीखवे छे
के साधर्मीना कोई दोषने मुख्य करीने धर्मनी निंदा थाय तेम न करवुं; पण प्रेमपूर्वक
समजावी तेने ते दोषथी छोडाववो; अने धर्मात्माना गुणोने मुख्य करीने तेनी प्रशंसा–
द्वारा धर्मनी वृद्धि थाय तेम करवुं.
(६) स्थितिकरणमां प्रसिद्ध वारिषेण मुनिराजनी कथा आपणने एम शीखडावे
छे के, कोई पण साधर्मी–धर्मात्मा कदाचित शिथिल थईने धर्ममार्गथी डगतो होय तो
तेना प्रत्ये तिरस्कार न करवो पण प्रेमपूर्वक तेने धर्ममार्गमां स्थिर करवो. तेने
सर्वप्रकारे सहाय करीने, धर्मनो उल्लास जगाडीने, जैनधर्मनो परम महिमा समजावीने
के वैराग्यभर्या संबोधन वडे, हरकोई प्रकारे धर्ममां स्थिर करवो. तेम ज पोते पोताना
आत्माने पण धर्ममां वधु ने वधु स्थिर करवो; गमे तेवी प्रतिकूळतामां पण धर्मथी
जरापण डगवुं नहीं.