Atmadharma magazine - Ank 336
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९७ आत्मधर्म : ३७ :
आनंदमय मोक्षभावरूप परिणमे छे.
अनंता जीवो भेदज्ञानना अभ्यासवडे शुद्धआत्माने अनुभवीने मुक्ति पाम्या छे,
जेओ मुक्ति पाम्या तेओ बधाय रागथी जुदा पडीने ज मुक्ति पाम्या छे; रागने राखीने
कोई मुक्ति पाम्युं नथी. रागथी भिन्न पोताने अनुभवनारा जीवो ज मुक्ति पामे छे, ने
राग साथे एकता अनुभवनारा जीवो ज बंधाय छे. माटे मुमुक्षुए भेदज्ञानना निरंतर
प्रयोगवडे पोताना आत्माने समस्त परभावोथी भिन्न अनुभवमां लेवायोग्य छे.
अहा, जेमणे आवुं भेदज्ञान कर्युं तेमनो अवतार ऊजळो छे...
तेमनो आत्मा ऊजळो छे. ।।
जय हो भेदज्ञाननो...... जय हो उज्वल आत्मानो
विविध समाचार
* सोनगढमां, तेमज अन्यत्र दशलक्षणधर्म आनंदोल्लासपूर्वक उजवाया हता.
विद्वानो द्वारा अध्यात्मप्रवचनो सांभळीने गामेगामथी मुमुक्षुओए प्रसन्नता व्यक्त करी छे,
ने आभारपत्र आवेल छे. सौराष्ट्र–गुजरात उपरांत मुंबई, मलाड, घाटकोपर, मद्रास,
कलकत्ता बेंगलोर, हैदराबाद, ललितपुर, महरोनी, टीकमगढ, बीना, विदिशा, भोपाल, लश्कर–
ग्वालियर, जयपुर, खनियाधाना, मलकापुर, सहारनपुर, खंडवा;लोहारदा, राघौगढ, कोटा,
अरोन–गुना, ईटावा, महीदपुर, बीना–बजरीया, देवलगांव–राजा (महाराष्ट्र) वगेरे केटलाय
स्थळे सोनगढ–संस्था द्वारा वांचनकारनो बंदोबस्त थयो हतो, ने दरेक स्थळे हजारो
जिज्ञासुओए प्रवचन सांभळीने, पू. गुरुदेव प्रत्ये आभारनी लागणी व्यक्त करी हती.
जैनसमाजमां वीतरागी तत्त्वज्ञाननो प्रचार दिवसे–दिवसे वृद्धिगत थई रह्यो छे; हजारो जीवो
जागृत बनीने आत्महित माटे जैनधर्मना साचा तत्त्वज्ञाननो अभ्यास करी रह्या छे.
आ उपरांत रखियाल, जलगांव वगेरे गामोमां जैन–शिक्षणशिबिरनुं पण
आयोजन थयुं हतुं, तेमां मोटी संख्यामां जिज्ञासुओए लाभ लीधो हतो.
* सम्यग्दर्शन पुस्तक चोथुं जे वैशाख सुद बीजे पोरबंदरमां प्रकाशित थयुं हतुं,
तेनी थोडीक प्रतो वेचाणविभागमां पण रू. १–५० नी ओछी किंमते मळी शके छे.
पोस्टथी मंगावनारे बे रूपिया मोकलवा. सम्यग्दर्शन संबंधी दरेक आत्मार्थीने गमे
एवा सुंदर लेखोनुं आमां संकलन छे. आत्मार्थनी पुष्टि करीने सम्यग्दर्शननी अद्भुत
प्रेरणा आपे छे. दरेक जिज्ञासुए खास वांचवा लायक छे.