Atmadharma magazine - Ank 336
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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आपणी वात
[संपादकीय]
अहा, जगतमंगलकारी आपणा जैनशासनमां आत्माना परम हितनो जे मार्ग
तीर्थंकर भगवंतोए प्रकाश्यो, कुन्दकुन्दआचार्यदेव जेवा वीतराग संतोए जे
वीतरागमार्गनो प्रवाह वहेतो राख्यो, अने कुन्दकुन्दप्रभुना ए वीतरागमार्गने श्री
कहानगुरु आजे आपणी समक्ष आ भरतक्षेत्रमां प्रकाशी रह्या छे–ते महान आनंदनी
वात छे. विदेहमां सदाय वहेतो धर्मप्रवाह आजे आपणने आ भरतक्षेत्रमां पण मळी
रह्यो छे.
बंधुओ, आ भरतक्षेत्रमां चोथाकाळ जेवा धर्मकाळमां पण वच्चेवच्चे असंख्य
वर्षो सुधी धर्मनो विरह थई गयो हतो एटले जैनधर्मना वक्ता के श्रोता कोई
सम्यग्द्रष्टि जीव असंख्यवर्ष सुधी आ भरतक्षेत्रमां न हता; ए रीते चोथा काळमांय
दुर्लभ एवो आ जैनधर्म अत्यारे आ पंचमकाळे पण आपणने कहानगुरुना श्रीमुखे
निरंतर साक्षात् सांभळवा मळी रह्यो छे, अने स्वानुभवथी ते मार्गने साधनारा
सम्यग्द्रष्टि जीवो साक्षात् नजरे जोवा मळे छे,–तो शुं ओला चोथाकाळ करतांय आपणे
आ पंचमकाळमां वधारे भाग्यशाळी नथी?
गुरुदेव जे परम शांतिनो वीतरागमार्ग देखाडे छे, चैतन्यमहिमानो जे दरियो
रोजरोज उल्लसावे छे, तेमांथी झीलीने थोडीसी मधुरी वानगी आपणुं आ आत्मधर्म
घरेघरे पहोंचाडे छे, मुमुक्षुओ आनंदथी ते वांचे छे.....ते वांचीने, तेमां गुरुदेवे बतावेलो
वीतरागमार्ग जाणीने आपणने घणो आह्लाद थाय छे, बहुमान आवे छे.
आवा ‘आत्मधर्म’ नी व्यवस्थामां साथ आपवो, तेनो आदर करवो, तेनी
प्रभावना करवी ते पण मुमुक्षुनुं प्रिय काम छे. आ कार्य माटे आत्मधर्म आपनी पासेथी
नीचेनी थोडीक अपेक्षा राखे छे–
आ अंक मळ्‌या पछी एक ज अठवाडीयामां आप आपनुं लवाजम चार रूपिया
नीचेना सरनामे मोकली आपशो– [आत्मधर्म कार्यालय, सोनगढ सौराष्ट्र]
–विशेष सूचनाओ सामे पाने फरीथी वांचो.