Atmadharma magazine - Ank 337
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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सुखमय सुप्रभात
अहो, आत्मानुं सुख, जे रागथी पार छे तेनो
स्वाद जीवे पूर्वे कदी चाख्यो न हतो. सम्यग्दर्शनरूपी
चैतन्य–प्रभाते ऊग्युं त्यारे आत्माना अनुभवमां ते अपूर्व
आह्लादरूप सुखनो स्वाद पहेलीवार आव्यो. ने पछी
तेमां लीनतावडे शुद्धोपयोगी केवळज्ञान थतां तो ते सुख
अतिशयपणे अनुभवमां आव्युं, आखो सुखनो दरियो ज
उल्लस्यो. ए सुखनी शी वात! भगवान कुन्दकुन्दस्वामी
जेवा संत जेनी अत्यंत प्रशंसा करे छे, तेवुं सुख आत्माना
स्वभावमां भर्युं छे. अरे, प्रसन्नताथी एनी प्रतीत तो करो.
प्रतीत करतां ते प्रगट थशे. नास्तिमांथी अस्ति क्यांथी
आवशे? सत् छे तेनी अस्तिनो स्वीकार करतां ते
अनुभवमां आवे छे ने सुखमय सुप्रभात खीली जाय छे.
वीर सं. २४९८ कारतक (लवाजम: चार रूपिया) वर्ष २९: अंक १