Atmadharma magazine - Ank 337
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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वार्षिक वीर सं. २४९८
लवजम करतक
चर रूपय OCTO. 1971
* वष: २९ अक १ *
आपणुं उत्तम ध्येय
साधर्मी बंधुओ, दीवाळीना मंगल पर्वमां गुरुदेवे पीरसेला
उत्तम अध्यात्म तत्त्वनी आनंदकारी बोणी आत्मधर्मना आ अंक द्वारा
आप मेळवी रह्या छो. आ एवी अलौकिक बोणी छे के जेना वडे
मुक्तिनो उत्तम लाभ थाय छे. अहा! आत्मानो लाभ थाय–एना जेवुं
उत्तम बीजुं शुं होय!
गुरुदेव जैनशासनना मर्मरूपे आपणने निरंतर कहे छे के हे
भव्य! आनंदथी भरेला तारा आत्मानी तुं अनुभूति कर
अंर्ततत्त्वनी आवी अनुभूति करवी ते ज जीवननी सफळता छे.
रागथी पार आत्मानी अनुभूतिरूप उत्तम ध्येयवाळुं ज
मुमुक्षुनुं जीवन होय छे. अने ज्यां आवुं उत्तम ध्येय छे त्यां
आत्मामांथी उत्तम शांतिना फुवारा फूटे छे, त्यां संसारनो कोलाहल
रहेतो नथी. जगतना कोलाहलथी अत्यंत दूर–दूर, चैतन्यतत्त्वना परम
शांतरसमां ऊंडी शोध करीने मुमुक्षुजीवो पोताना उत्तमध्येयने पामीने
आनंदमय सुप्रभात उगाडो...
(–ब्र. ह. जैन)